होली के बाद मैंने
कोई भी यात्री नहीं की थी इसकी वजह ये थी की गर्मी काफी पड़ रही थी इस साल अन्य साल
के मुकाबले l अब समस्या थी कहाँ जाऊँ क्योंकि मई-जून के महीने में सभी जगह घोर
सांसारिक जीवों की भीड़ होती है और मुझे भीड़-भाड़ वाली जगह जाना पसंद नहीं l अंत में
चल पड़ा वृन्दावन और हरिबाबा बाँध धाम l
सबसे पहले १९ जून को
ट्रेन से मथुरा आया l वृन्दावन आते समय मुझे एक व्यक्ति जो हरियाणा के मिले जो कह
रहे थे की वे हर पूर्णिमा को वृन्दावन आते है लेकिन सिर्फ एक दिन के लिये इस बार
परिवार को लेकर आये है l उसी प्रकार एक व्यक्ति ने बतलाया की वे पहली बार वृन्दावन
आये है और अब से हर पूर्णिमा पर आयेंगे l मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं पूर्णिमा
सोचकर आया भी नहीं था l शाम को भी वृन्दावन में एक व्यक्ति मिले जो यही बात कह रहे
थे की वे भी हर पूर्णिमा को आयेंगे l
वृन्दावन आकर
अथखम्भा रोड पर उसी धर्मशाला में ठहरा जहाँ पूर्व में भी ठहरा था l धर्मशाला में
२-३ बार गया हूँ इसलिये केयरटेकर को मेरा नाम भी याद था l
शाम को निधिवन गया
जहाँ पहले भी जा चुका हूँ l
अगले दिन यानि २०
जून को पूर्व में गये स्थानों सिद्धपीठ इमलीतल्ला, टटिया आश्रम और जगनाथ घाट के
मन्दिर गया l २१ जून को भी इस स्थानों पर दुबारा गया l मुझे वहाँ पर एक टीशर्ट
पसंद आयी जिसके आगे भगवान् कृष्ण और राधा जी का चित्र था था पीछे लिखा था – ‘I LOST MY HEART IN VRINDAVANA’ l मैंने ये टीशर्ट न
सिर्फ अपने लिये बल्कि और लोगों के लिये भी लिया l जब मैंने whatsapp पर उसका
चित्र भेजकर अपने भाई बहनों से पूछा तो सभी उसे लेने को तैयार हो गये l टीशर भी
कोई महँगा नहीं था १०० से कम ही दाम था l
२० तारीख ब्रजेशजी
ने मुझसे पूछा की आप वृन्दावन में काँच का मन्दिर देखे हैं या नहीं l मैंने कहा
नहीं l मैंने नेट से काँच के मन्दिर की जगह पता की फिर वहाँ चल पड़ा l एक रिक्शे
वाले को ४० में वहाँ जाने को तय किया l मैं जहाँ था वहाँ से उसकी दुरी डेढ़-दो
किलोमीटर होगी l हालाँकि मुझे वह कुछ ख़ास नहीं लगा l फिर उसने बतलाया की ये काँच
मन्दिर ४०-५० साल पुराना था l एक और काँच मन्दिर है जो १०-१५ साल पुराना है l मैं
वह भी देखने को तैयार हो गया l हाँ वह जरुर शानदार था l अन्दर गुफा में झाँकी के
भी दर्शन होते थे l मैंने गुफा के अन्दर तस्वीरे ली l
२१ की शाम को बाँके
बिहारी मन्दिर के पास पहुँचा तो वहाँ भयंकर भीड़ l अतः मैं वहाँ न जाकर वहाँ से
थोड़ी ही दूर स्थित स्नेह बिहारी मन्दिर गया जिसे मृदुल कृष्णजी ने बनवाया है l वे
तथा उनके पुत्र गौरव कृष्णजी प्रसिद्द भागवत-कथा वाचक है l जाकर वहाँ पड़े का
प्रसाद चढ़ाया l यहाँ विशेष भीड़ नहीं थी l
इस बार भी वृन्दावन
में काफी आनंद आया l हाँ चूँकि ज्यादातर उन्हीं जाने पहचाने जगह पर गया अतः इस बार
वहाँ फोटो लेना उचित नहीं समझा सिर्फ काँच मन्दिर का फोटो लिया l
२२ जून को मथुरा से
अलीगढ़ का बस पकड़ा l २ घंटे बाद अलीगढ़ आ गया l फिर वहाँ से मुरादाबाद वाली बस में
बैठा क्योंकि मुझे हरिबाबा बाँध धाम जाना था l जैसा ब्रजेश जी से पता किया था सबसे
पहले धनारी उतर गया l वहाँ से ब्रजेश जी के साथ उनके घर पहुँचा वेरावटी l मैं होली
के समय भी यहाँ गया था l
शाम को कुँवर जी से
मुलाक़ात हुई l उनसे धार्मिक चर्चा हुई l उनकी उम्र ५० से ऊपर है l उन्होंने अपना
बचपन का अनुभव सुनाया की वृन्दावन में जो अतल्ला चुंगी है l उस समय वहाँ से बाँके
बिहारी मन्दिर तक जंगल हुआ करता था l मुझे और लोगों ने भी आज से ४०-५० वर्ष पूर्व
के वृन्दावन के बारे में यही बतलाया है की वहाँ घना जंगल हुआ करता था l और आज तो
पुरे वृन्दावन में मन्दिर, धर्मशाला और आश्रम भरे हुए है l
२५ की शाम को
हरिबाबा बाँध धाम आ गया ठहरने l वहाँ सैकड़ों कमरे हैं l अभी कोई उत्सव नहीं था अतः
अधिकाँश कमरे खाली ही थे l आराम से एक कमरे में ठहर गया l
होली के समय मैं जब
यहाँ आया था तो मुझे बहुत अच्छा लगा था l उस समय यहाँ ठंढ थी l मैंने वह देखकर ये
गलती कर दी की सोचा की इस समय भी यहाँ आना सही रहेगा हालाँकि ब्रजेश जी ने मुझे गुरुपूर्णिमा
के समय आने को कहा था l लेकिन मैंने उस समय आने से मना किया था क्योंकि उस समय
यहाँ लाखों की भीड़ होती है l और भीड़ मुझे पसंद नहीं l और दूसरी बात ये भी है की
फिलहाल मैं किसी को गुरु के रूप में मानता भी नहीं l
मैं वहाँ २५ से ३०
जून तक रहा l इस बार विशेष आनंद नहीं आया l वजह थी गर्मी l भोजन भी सामान्य था
बड़ी-बड़ी रोटी और आलु कडीमा की सब्जी और दाल l वैसे वहाँ के लोगों से जान-पहचान
रहने से दूध आदि भी मिल सकता था l मुझे भी एक दिन मिला l फिर मैंने नहीं माँगा l
मुझे इस तरह सिफारिस करके माँगना पसंद नहीं l वैसे इस तरह का भोजन साधना के
बिल्कुल उपयुक्त है और दोष भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि वहाँ इसके लिये कोई पैसे
नहीं माँगे जाते खाने या रहने के l एक सज्जन वहाँ २० दिन से रह रहे थे l ब्राह्मण
थे l उनसे चर्चा होती रहती थी l उन्होंने कई बार चाय भी पिलाई l वहाँ एक साधु के
बारे में मालुम पड़ा की उन्हें ठगी के कारण मध्यप्रदेश से भगा दिया गया था l अभी
यहाँ रह रहे हैं l मैंने उससे भेंट भी की l यहाँ भी उन्होंने ठगी की थी किसी से l
उनके बारे में सुना की वे अपने लिये कहीं पर कमरा बनवा रहे हैं l कमरा बनवाने के
बाद वे वहीं चले जायेंगे l वे खुद को मौनी बाबा कहते थे और दावा ये की चातुर्यमास
में मौन रहते हैं l अब उसका नाम लेना उचित नहीं समझता l
५-६ दिन जब बाँध धाम
पर रहाँ तो कई लोगों से परिचय हुआ इस बार l चाहता तो अलग से भी भोजन बनाने की
व्यवस्था हो सकती थी l लेकिन १-२ दिन के लिये करना मुझे पसंद नहीं आया l २ दिन
ब्रजेश जी भी मिलने आये थे बाँध धाम पर l २८ जून से यहाँ भागवत सप्ताह का भी आयोजन
हुआ था यहाँ के ट्रस्टी ब्रह्मचारी जी के निधन के कारण l
अतः इस बार हरिबाबा
बाँध धाम पर मिला-जुला अनुभव रहा l मुझे समझ आया की यहाँ आने के लिये जाड़े का मौसम
ही उपयुक्त है l पिछले साल मई में ऋषिकेश गया था तब भी यही अनुभव हुआ था और वहाँ
भी भयंकर गर्मी थी l
प्रिय राहुल, आपकी ये पोस्ट बहुत सुन्दर है। बहुत विस्तार से और बहुत अच्छा विवरण दिया है आपने। मैं देख रहा हूं कि आपने 2016 से कुछ नया नहीं लिखा है। क्या कारण है? मैं आपका नाम http://indiatraveltales.in पर ब्लॉगर लिस्ट में डालना चाहता हूं। क्या आप भविष्य में भी लिखते रहेंगे या लिखना छोड़ चुके हैं?
ReplyDeleteRahul ji ab is duniya mai nahi hai. Aap ne unke post ko like iske liye dhanyabad
DeleteThanks a lot for sharing such a great article along with beautiful images.
ReplyDeleteMarvelous work!. The blog is brilliantly written and provides all necessary information I really like this awesome post. Thanks for sharing this useful post.
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