सोमनाथ स्टेशन से मेरी ट्रेन रातको ११ बजे थी और मैं सोमनाथ स्टेशन पर
ही ठहरा था इसलिये कोई हड़बड़ी नहीं थी l आराम से १०.३० से बाद निकला l स्टेशन परिसर
में बहुत ज्यादा भीड़ उस समय भी नहीं थी l २ ट्रेन लगी हुई थी l अब यहाँ पर मुझे
थोड़ी देर के लिये एक कन्फ्यूजन हो गया l हुआ ये की मेरे टिकट पर ट्रेन का नाम
सोमनाथ द्वारका एक्सप्रेस लिखा हुआ था जबकि ट्रेन पर लिखा हुआ था सोमनाथ ओखा l असल
में ओखा स्टेशन द्वारका के बाद पड़ता है इसकी मुझे उस समय जानकारी नहीं थी l कई
ट्रेनों को एक से अधिक नामों से भी सम्बोधित किया जाता है l खैर करीब ५ मिनट तक ये
दुविधा बनी रही l फिर लोगों से पूछनेपर ये विश्वास हो गया की यही वह ट्रेन है तब
जाकर बैठा l जाकर आराम से सो गया l सुबह ट्रेन द्वारका पहुँचने का समय करीब साढ़े ७
बजे था l ट्रेन करीब आधे घंटे देरसे ८ बजे द्वारका स्टेशन पहुँची l
इस प्रकार २२ फरवरी की सुबह मैं द्वारका स्टेशन पर था l द्वारका
स्टेशन पर भी सोमनाथ की भाँति विशेष भीड़ नहीं थी l स्टेशन से बाहर निकलते ही कुछ
टेम्पो वाले खड़े थे l यहाँ भी मेरे ठहरने के लिये रेलवे के ऑफिसर रेस्ट हाउस में कमरा
बुक था l ये स्टेशन से बाहर निकलते ही सामने ही था l खोजने में कोई परेशानी नहीं
हुई l
वहाँ पहुँचने पर मालुम पड़ा की केयरटेकर यहाँ है नहीं l वहाँ सिर्फ एक
लड़का था l जोकि रेस्ट हाउस में साफ़ सफाई देखता था l उसने बतलाया की केयरटेकर दोपहर
में १ बजे आयेगा l उसे ठीक से हिंदी समझ में नहीं आ रही थी l और गुजराती मुझे नहीं
आती l फिर भी किसी प्रकार हम एक दूसरे की बात समझ पा रहे थे l फिर फ़ोन पर उसने
केयरटेकर से बात करवाई l वह जब संतुष्ट हो गया की मैं वही हूँ जिसके लिये वह कमरा
बुक किया गया है l तब मुझे कमरे की चाभी दे दी गयी l सोमनाथ में जैसे की मैंने
बतलाया था वहाँ बाहर घुमने जाते समय कमरे की चाभी देकर जानी पड़ती थी l मैंने उस
लड़के से पूछा तो मालुम पड़ा की यहाँ ऐसा नहीं करना पड़ता l यहाँ कमरे का चार्ज भी कम
था l यहाँ था रोज का १०० रुपये l
उस लड़के ने कहा की वह परिचित ऑटो वाले को जानता है अगर घुमने जाना हो
तो वह बुला देगा l मैंने उसकी बात में विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई l वैसे भी घूमते
हुए अपने अनुभव से मैंने सीखा है की प्रायः बिना स्वार्थ के बाहर में कोई किसी की
मदद नहीं करता l अतः कही पर किसी के साथ जाकर बात करने के बजाय खुद बात कर ऑटो,
कमरा आदि लेने जाना चाहिये l
कमरे में आकर फ्रेश आदि होकर ९ बजे के बाद वहाँ से निकलकर स्टेशन के
पास फिर से आ गया l वहाँ कुछ टेम्पो वाले खड़े थे l मुझे द्वारका के बारे में विशेष
जानकारी नहीं थी की यहाँ का प्रमुख मन्दिर कौन से हैं l एक टेम्पो वाले से बात हुई
l पूछने पर उसने बतलाया की यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर द्वारकाधीश मन्दिर है l और
५-६ छोटे मन्दिर है l उसने बतलाया की सिर्फ द्वारकाधीश मन्दिर जाना है तो ४० रुपये
(मन्दिर वहाँ से करीब ढाई किलोमीटर था) लगेंगे और अन्य मन्दिर भी जाना है तो २००
रुपये l फिर बात करने पर वह १८० में राजी हो गया l वह आदमी सही था उसने साफ बतलाया
की सब मन्दिर २-३ किलोमीटर के दायरे में है l मेरे नजर में वह सही इसलिये था
क्योंकि कई ऑटो वाले क्या करते हैं की ज्यादा पैसे लेने के लिये लोगों को जितनी
दुरी रहती है उससे ज्यादा बताते है l
सबसे पहले वह मुझे लेकर ब्रह्मकुमारिज वालों के मन्दिर लेकर पहुँचा l
यद्यपि ब्रह्मकुमारिज से मैं असहमति रखता हूँ क्योंकि वे शास्त्र की मनमानी
व्याख्या करते हैं l फिर भी देखने चला गया l उनकी आर्ट गैलरी अच्छी थी l
फिर बिरला वालों के गीता मन्दिर में गया l बगल में उनका धर्मशाला भी
स्थित था l वहाँ दीवार पर भगवद्गीता के श्लोक लिखे हुए थे l वैसे बिरला धर्मशाला
और मन्दिर कई शहरों में स्थित है l
फिर भद्रकेश्वर महादेव के दर्शन किये l उसके बगल से समुन्द्र की लहरों
का चट्टान से टकराने का नजारा बहुत अच्छा था l
फिर गायत्री परिवार द्वारा स्थापित गायत्री शक्तिपीठ के दर्शन किये l
फिर सिद्धेश्वर महादेव के दर्शन किये l उस परिसर में बहुत से साधु-संत
बैठे हुए थे l पास में बहुत सी गायें मौजूद थी l वहाँ एक गहरा कुआँ भी थी l उस
स्थान को मनोकामना सिद्ध करने वाला माना जाता है l वैसे मुझे इस मन्दिर से जुड़ा
हुआ कोई धार्मिक या ऐतिहासिक महत्व नहीं मिला l इस नामसे देश में और भी कुछ मन्दिर
हैं l
फिर ऑटो वाला मुझे लेकर स्वामीनारायण मन्दिर पहुँचा l वहाँ बहुत से
दक्षिण भारतीय लोग नजर आये l उसमें ज्यादातर स्वामीनारायण के भक्त थे l वह मन्दिर बहुत खुबसूरत था l मन्दिर के मुख्य
प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ द्वारपाल और हाथी की मूर्ति स्थापित थी l अन्दर भी बहुत
से देवविग्रह प्रतिष्ठित थे l मंदिरों की दीवार पर उकेरे गये चित्र देखने योग्य थे
l
यहाँ दर्शन कर बाहर आया l अभी तक जितने मंदिरों के दर्शन करने गया कही
भी कैमरे, मोबइल आदि के ले जाने पर रोक नहीं था और न किसी प्रकार की चेकिंग थी l
उसके बाद अंत में ऑटो वाले ने मुझे यहाँ के सबसे प्रमुख द्वारकाधीश मन्दिर में
लाकर छोड़ दिया l उसने मुझे जिन मंदिरों के दर्शन करवाये उसमें करीब १ घंटा लगा l मैंने
शुरू में ही जब उससे वापस भी छोड़ने की बात कही थी इसपर उसका कहना था कि द्वारकाधीश
मन्दिर से दर्शन करके आने में करीब १ घंटे लगेंगे l
वैसे ये मूल द्वारका नहीं है l मूल द्वारका बेट द्वारका को कहते है
जिसे नाव/लांच से पार करके जाना पड़ता है बिल्कुल गंगासागर की तरह l मैंने ऑटो वाले
से पूछा की वहाँ कैसे जाया जा सकता है l मालुम पड़ा की द्वारकाधीश मन्दिर से थोड़ी
दूर पर ही भद्रकाली चौक है जहाँ से वहाँ के लिये बसे चलती है l दो सिफ्ट में पहली
सुबह ८ बजे से जो १ घुमाकर वापस ले आती है और दूसरी २ बजे से जो ७ बजे तक घुमाकर
वापस लाती है l
आखिर मैं द्वारकाधीश मन्दिर पहुँचा l बाहर बहुत से फूल और प्रसाद
बेचने वाले खड़े थे l मैंने चढाने के लिये २ तुलसी के पत्तों की माला ले ली l परिसर
में मोबइल, कैमरा के लिये तथा चप्पल आदि जमा कराने के लिये अलग-अलग काउंटर बने थे
l मैंने वहाँ मोबइल, कैमरा जमा करा दिया l वहाँ मौजूद कुछ पुजारियोंने मुझसे जानना
चाहा की मैं कहाँ से आया हूँ l लेकिन मेरे द्वारा विशेष उत्सुकता नहीं दिखाने पर
उन्होंने मुझसे पूजा आदि करवाने के लिये नहीं कहा l
चेकिंग के बाद अन्दर पहुँचा l अन्दर काफी भीड़ थी l दर्शन करने में
करीब आधा घंटा लगा l अन्दर द्वारकाधीश का विग्रह जिस मन्दिर में स्थापित है उसके
अलावा १५ अन्य छोटे मन्दिर और भी है l आदि शंकराचार्य द्वारा करीब ५०० इसा पूर्व
स्थापित चार पीठों में से शारदा पीठ उसी परिसर में साथ में ही स्थित है l इस पीठ
के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती है l मैंने सभी मंदिरों के दर्शन
न करके २-३ मंदिरों के ही दर्शन किये l
दर्शन करके आया तो परिसर में स्थित सारदा पीठ के पुस्तकालय में गया l
वहाँ कुछ देर रुककर फिर मोबाइल, कैमरा लेकर परिसर से बाहर निकल गया l
जाकर पहले भोजन किया आलु के पराँठे का l उस समय दिन के करीब साढ़े ११
बज चुके थे l चाहता तो २ बजे के बस का पता करके उसी दिन बेट द्वारका के लिये जा
सकता था l लेकिन इच्छा नहीं हुई l वैसे भी मुझे हड़बड़ी नहीं थी क्योंकि मुझे
द्वारका से परसों दोपहर १ बजे निकलना था l अतः मैंने वापस रेस्ट हाउस में जाने का
फैसला किया l वहाँ ज्यादातर ऑटो रिज़र्व में ही चलती है l एक ऑटो पकड़कर वापस रेस्ट
हाउस आ गया l ४० रुपया भाड़ा लगा l इस ऑटो वाले ने बतलाया की अगर बेट द्वारका जाना
है तो आज शाम को ही बस की टिकट लेनी होगी l अतः मुझे शाम को एक बार फिर द्वारकाधीश
मन्दिर की तरफ जाना ही था l
आकर कमरे में आराम किया l दोपहर में धुप तेज थी l करीब ४ बजे फिर
द्वारकाधीश मन्दिर की ओर निकल गया l इस बार पैदल ही निकल पड़ा l क्योंकि २ किलोमीटर
जाने के लिये मुझे बार-बार ४० रुपये देना पसंद नहीं था l बेट द्वारका के लिये टिकट
लेना था ही साथ ही वहाँ जाना इसलिये भी जरुरी था क्योंकि द्वारका स्टेशन के पास
मुझे कोई होटल नजर नहीं आया जहाँ भोजन किया जा सके l कुछ छोटे-मोटे दुकान थे जहाँ
बिस्कुट, चिप्स आदि ही मिल सकते थे l
इस बार मैं दुसरे रास्ते से उस ओर गया l पहले पूछते-पूछते भद्रकाली
चौक पहुँचा l बहुत से दुकानों पर ट्रेवल एजेंट द्वारा बेट द्वारका के लिये बस का
टिकट मिल रहा था l मुझे रेस्ट हाउस के लड़के ने वहाँ के किसी ऑफिस का पता बतलाया था
जहाँ बेट द्वारका के लिये बस का टिकट मिल जायेगा l वह कुछ दूर था फिर एक ट्रेवल
एजेंट से ही जिसका वहाँ दुकान था बस का टिकट ले लिया अगले दिन सुबह ८ बजे के लिये
l उसका रेट ८० रुपये था l पूछने पर उसने बता दिया की बस उस दुकान के पास ही कल खड़ी
रहेगी l बस हमें चार जगह ले जाती – रुक्मणी मन्दिर, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गोपी
तालाब तथा बेट द्वारका (यही पर भगवान् श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट हुआ थी l उसका
नाम तो भेट द्वारका था बाद में कहते कहते उसका नाम बेट द्वारका पड़ गया ) l
टिकट लेने के बाद मैं द्वारकाधीश मन्दिर की तरफ चल पड़ा l यहाँ पर उस
जगह के बारे में बताना आवश्यक रहेगा l उधर आस-पास बहुत सी गली थी और ३-४ तरफ से
रास्ता होकर द्वारकाधीश मन्दिर की तरफ जाता था l मैंने फिर दूसरा रास्ता पकड़ा और
द्वारकाधीश मन्दिर पहुँच गया लेकिन दूसरी
ओर से बगल में घाट था शायद गोमती घाट उस जगह पर स्नान का महात्म्य है l शारदा पीठ
में रहने वाले कुछ विद्यार्थी नजर आये l बगल में एक पुल था सुदामा सेतु नामसे
हालाँकि उसपर जाने की मनाही थी पता नहीं क्यों l
मैं मन्दिर पहुँचा l इस समय भी बहुत से फूल और प्रसाद बेचने वाले खड़े
थे l मुझसे उन्होंने लेने को कहा मैंने मना किया क्योंकि सुबह मैं दर्शन करके आ
चुका था l इस समय सुबह के मुकाबले ज्यादा भीड़ थी l सम्भवतः इसका कारण ये था कि
मन्दिर के पट थोड़ी देर पहले ही खुले थे l मैं परिसर में आधे घंटे से ऊपर रुका फिर
निकल गया l मन्दिर के पास के दुकान में भोजन नहीं किया सोचा आगे के किसी दुकान में
कर लूँगा l मैं लाल रंग के एक चौड़ा गेट के पास आ गया जोकि भक्तिवेदांत स्वामी
प्रभुपाद के नाम से रखा गया था l वहाँ आने पर ख्याल आया की यहाँ से आगे कोई दुकान
मिलेगी ही नहीं भोजन की स्टेशन तक l
अतः वहाँ से दुबारा मन्दिर के पास आकर उसी होटल में जाकर दुबारा भोजन
किया जहाँ सुबह किया था l भोजन करके टहलते हुए पैदल वापस कमरे में आ गया l रात को
करीब ८ बजे केयरटेकर आकर मुझसे मिला उसने बतलाया की उसकी भतीजी की शादी है इसलिये
आजकल भागदौड़ लगा ही रहता है l
सुबह करीब ७.१५ बजे फ्रेश अदि होकर स्टेशन आ गया l वहाँ कुछ ऑटो वाले
खड़े थे l पूछने पर वे भद्रकाली चौक का १०० या अधिक बता रहे थे जबकि कल टेम्पो वाला
४० में ही गया था l फिर एक ऑटो शेयर में जा रहा था मैं उसपर बैठा l पूछने पर वह उस
ट्रेवल एजेंट का दुकान जानता था जिसके बस से मुझे बेट द्वारका जाना था l उसने २०
रुपये में मुझे उस दुकान पर छोड़ दिया l दुकान पर जाकर पूछा बगल में ही बस लगी हुई
थी जाकर अपनी सीट पर बैठा l अभी बस खुलने में कुछ देर थी तबतक पास के दुकान से
रास्ते में खाने के लिये बिस्कुट, समोसा आदि ले लिये l
बस करीब ८ बजकर १० मिनट पर खुली l सबसे पहले वह हमें रुक्मणिजी के
मन्दिर में लेकर पहुँची l बस में एक पण्डितजी सवार थे जो हमें रास्ते भर जानकारी
देते आ रहे थे l यहाँ के बारे में उन्होंने बतलाया था की दुर्वासा के शाप के वजह
से भगवान् कृष्ण से रुक्मणिजी का वियोग हुआ था l उन्होंने हमें वहाँ विशेष पूजा आदि
में न लगने की सलाह दी l बतलाया गया की बस यहाँ २० मिनट रुकेगी l
हम दर्शन करने पहुँचे l वहाँ चढाने के लिये १० रुपये में माला मिल रही
थी लगभग सभी ने लिया l पट बंद था l तबतक वहाँ मौजूद पुजारी उस जगह के बारे में
बतलाने लगे l उन्होंने भी वही दुर्वासा के शाप वाली बात बतलायी l फिर बतलाया की
यहाँ आये बिना द्वारका की यात्रा आधी ही है l उन्होंने किसी घटना का उल्लेख किया
जिस वजह से यहाँ का पानी खारा रहता है l फिर अपने पूर्वजो के नामपर पानी का टैंकर
आता है उसके लिये दान करने की अपील की गयी l पुरे दिन के लिये कोई आगे नहीं आया l
कुछ लोगों ने कुछ-कुछ दान किया पितरों के नाम पर l मैंने नहीं किया इसकी वजह ये है
पितरों के लिये दान करने का अधिकार पुत्र को है उसके न रहने पर बाद के वंशजो को l
मेरे पिता जीवित है अतः दादा, परदादा आदि के लिये करना मेरे लिये मना है
शास्त्रोक्त रीति से l खैर पट खुलने के बाद दर्शन आदि करके हम वापस बस में आ गये l
वहाँ रुक्मणि जी द्वारा भगवान् कृष्ण को लिखा गया पत्र मिल रहा था गुजराती और
हिंदी में l
उसके बाद हम द्वादश ज्योतिर्लिंगोंमें से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
पहुँचे l वहाँ के बारे में पण्डितजी ने पहले ही बतला दिया था की आप लोग सिर्फ
दर्शन करके आ जाये l पूजा आदि के चक्कर में नहीं रहियेगा l क्या होता है की उसकी
थाली में उसका पूजा का समान फिर घूम फिरकर वापस उसके पास l यहाँ भी बस २० मिनट
रुकने की बात कही गयी l हम दर्शन करने पहुँचे l वहाँ दूर से ही शिवलिंग के दर्शन
करने पड़े l कारण ये था की धोती पहनकर जाने वालों को ही शिवलिंग के पास जाकर पूजा
करने की इजाजत थी l और शायद वहाँ हम कितने देर रुकेंगे उस हिसाब से चार्ज भी था l
मैंने वहाँ ३० रुपये के एक प्रसाद का पैकेट चढ़ाया l धोती पहनकर गया नहीं था तथा बस
सिर्फ २० मिनट रूकती अतः वहाँ शिवलिंग के पास जाने का समय भी नहीं था l दूर से ही
दर्शन करके निकल गया l परिसर में भगवान् शिवकी एक ऊँची प्रतिमा थी जैसे हरिद्वार
में भी था l परिसर में एक मन्दिर था जहाँ एक पुजारी जी सबको भभूत दे रहे थे l
मन्दिर के बाहर पुजारियों का समूह कुछ मुद्दों को लेकर अनशन पर बैठा हुआ था l उनकी
मुख्य मांग थी इन चीजो के विरुद्ध – दर्शन के लिये फिक्स चार्ज को लेकर, मन्दिर
में चढ़ने वाले आभूषण की लिखित जानकारी रखने के विरोध में l ज्यादातर मांगे आर्थिक
ही थी l
वहाँ से निकलकर हम आगे गोपी तालाब पहुँचे l यहीं पर अर्जुन का गाण्डीव
असफल हो गया था l उसके बारे कथा है की भगवान् कृष्ण ने अपनी सभी रानियों को
द्वारका से बाहर सुरक्षित ले जानेका भार अर्जुनको सौंपा था l अर्जुन को अहंकार हो
गया था की मेरे पास गाण्डीव जैसा धनुष है और महाभारत जैसे युद्ध में विजय प्राप्त
की है l काबा जाति के लोगों ने अर्जुन पर हमला करके गोपियों को लुट लिया l अर्जुन
के गाण्डीव ने काम नहीं किया l लुटेरों के डरसे रानियाँ तालाब में डूबकर मर गयी l
उस तालाब को इसलिये आज भी गोपी तालाब कहते हैं l
यहाँ के बारे में भी पण्डित जी ने बतला दिया था पहले ही की बस से
उतरकर सीधे कुछ ही दूर पर गोपी तालाब है l उन्होंने बतलाया की यहाँ पर स्थानीय
लोगों ने पैसा चढ़वाने के लिये बहुत से निजी मन्दिर बना रखे हैं l उनके चक्कर में न
पड़े l यहाँ भी बस के २० मिनट तक रुकने की बात कही गयी l जाकर हमने गोपी तालाब के
दर्शन किये l जल के छींटे शारीर पर छिड़का l फिर सामने के एक मन्दिर के दर्शन कर
वापस आ गये l वहाँ कुछ कुछ दुकानदार थे जो गोपी तालाब की मिटटी आदि बेच रहे थे l
मैंने भी १० रुपये का ले लिया l वहाँ करीब ५-६ मन्दिर और थे जिसके पुजारी लोगों को
उस मन्दिर में आने का आग्रह कर रहे थे l
वहाँ से दर्शन करके हम वापस बस में आ गये और चल पड़े यात्रा के अंतिम
चरण की तरफ l वहाँ पहुँचने के पूर्व पंडितजी ने बतलाया की जहाँ हम पहुँच रहे है वह
ओखा है भारत की अंतिम बस्ती l आगे समुन्द्र है १६० किलोमीटर तक फैला हुआ l उसके
आगे पाकिस्तान का कराँची शहर पड़ता है l यहाँ ज्यादातर मुसलमान है l खेती यहाँ हैं
नहीं l मुसलमान तो मछली मारने का काम करते हैं l उन्होंने अपने बारे में बतलाया की
वे ब्राह्मण है मछली मारने का काम नहीं कर सकते l ६ लोगों का परिवार है l वे इसी
प्रकार माँगकर अपना गुजरा चलाते है l उन्होंने दान की याचना की l लोगों ने
१०,२०,५०,१०० करके कुछ-कुछ उन्हें दिया l मैंने भी कुछ दे दिया l जहाँ से हमें
पानी का जहाज उस जगह जाने के लिये पकड़ना था वहाँ हम करीब सवा दस बजे पहुँचे l हमें
बतला दिया गया की जाने में करीब आधा घंटा लगेगा आने में आधा घंटा और दर्शन में आधा
घंटा l पौने १२ बजे तक दर्शन कर आ जाये l अधिक से अधिक १२ बजे तक l सवा १२ बजे हर
हाल में बस चल पड़ेगी l क्योंकि फिर सिफ्ट वाले यात्रियों को २ बजे द्वारका से लेकर
आना है l
हम करीब ५ मिनट पैदल चलकर उस जगह पहुँचे जहाँ बेट द्वारका ले जाने के
लिये पानी की जहाज खड़ी थी l ज्यादातर जहाज मुसलमानों की थी l ये इससे पता लग रहा
था क्योकि उसपर चाँद तारा वाला हरा झंडा लगा था l बहुत से जहाज पर साथ में भारत का
झंडा भी लगा हुआ था l गंगासागर जाने के लिये भी उसी प्रकार के जहाज का प्रयोग किया
जाता है फर्क सिर्फ ये है कि गंगासागर जाने के लिये जिन जहाज़ों का प्रयोग किया
जाता है वह इन जहाज़ों से बड़ा होता है तथा उसमे अन्दर में जाकर बैठना पड़ता है l
जबकि यहाँ जो जहाज चल रही थी उसमे खुले में बैठना पड़ता था l
हम जाकर जहाज में बैठे l जहाज में खुले में बैठने में बहुत अच्छा लगा
l जहाज ऊपर बहुत से सफ़ेद पक्षी उड़ रहे थे l बहुत से लोग उन्हें दाना खिलाते थे l करीब
पौने ११ बजे हम वहाँ पहुँच गये l और
मन्दिर तक जाने में और ५ से ७ मिनट लगे होंगे l रास्ते में एक पुल को पार करके
जाना होता था l जाकर वहाँ मोबाइल, कैमरा और चप्पल को जमा कराया l फिर अन्दर गया चेकिंग
से गुजरकर l अन्दर पहुँचा तो मुख्य मन्दिर के पट बंद थे l इसका नाम भी द्वारकाधीश
मन्दिर थे l पूछने पर मालुम पड़ा की मन्दिर के पट १२ बजे खुलेंगे l अन्दर में कुछ
अन्य मन्दिर भी थे जाकर उनके दर्शन किये l एक मन्दिर साक्षीगोपाल के नामसे था l
साक्षीगोपाल के बारे में बतलाना चाहूँगा की मैंने उस नाम से मन्दिर वृन्दावन,
गोवर्धन और उत्तरकाशी में भी देखा था l और अधिकाँश जगह लिखा था प्राचीन मन्दिर l
वैसे ऐतिहासिक मन्दिर साक्षीगोपाल का जो है वह पुरी के पास पड़ता है l इस बारे में
ऐसी कथा प्रसिद्द है की वृन्दावन से भगवान् कृष्ण की प्रतिमा एक गरीब ब्राह्मण
युवक का गवाही देने उड़ीसा में वहाँ गयी थी l भुवनेश्वर और पुरी के बीच इस नामसे एक
स्टेशन भी है l
चूँकि द्वारकाधीश मन्दिर के पट बंद थे अतः बिना दर्शन किये लौटने के
अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था l क्योंकि अगर हम दर्शन करने के लिये रुकते तो
बस जरुर चल देती l मैं जिस बस से आया था उसके ५ यात्री मुझे वहाँ नजर आये वे लोग
भी बिना दर्शन किये ही लौट रहे थे l जाकर रसीद कटाकर प्रसाद लिया और मोबइल, कैमरा
आदि लेकर वापस जाने लगा तो बस में जो पण्डितजी हमारे साथ आये थे l उन्होंने पूछा
की दर्शन हुआ l हमने कहाँ नहीं l तब उन्होंने हमसे कहा की जब यहाँ आये हैं तो
दर्शन करके ही जाये l बस तो आधा घंटा आगे-पीछे भी जा सकती है l मैं यहाँ बैठा हूँ
तब तक बस नहीं जायेगी l हम अपना सामान उनके पास रखकर दर्शन करने के लिये लाइन में
लग गये l १२ बजने से करीब १० मिनट पूर्व पट खुला और ५ मिनट बात दर्शन करके हम वापस
आये और उन पण्डित जी अपना समान लिया l मैंने जहाज पर चड़ने से पूर्व मुढ़ी जैसा दो
पैकेट लिया था ये सोचकर की शायद चढ़ता होगा l मन्दिर में मालुम हुआ की नहीं चढ़ता
अतः वह मेरे जेब में ही था l मेरे हाथ में प्रसाद देखकर एक गाय मेरे तरह आ रही थी
l तब मैंने पंडितजी को अपने जेब से वह मुढ़ी वाला पैकेट दे दिया जिसे उन्होंने
फाड़कर गाय को खिला दिया और मैं वहाँ से निकल गया l
आगे मैंने कुछ छोटे साइज के भगवन कृष्ण के फ्रेम किये हुए फोटो ख़रीदे
l फिर जहाज में चढ़ने के पूर्व मछली को आटे की गोलियाँ पानी में डाली l उसके बाद
जाकर जहाज में बैठ गया l जहाज अभी भरी नहीं थी l भरने के बाद करीब १० मिनट बाद
खुली l इस बार आते समय लगातर बहुत से सफ़ेद पक्षी लगातार जहाज के ऊपर उड़ते रहे l कोई
पानी में दाना डालता और लपककर बहुत से पक्षी उसे चुगने चले जाते l कोई हाथ से में
रखता पक्षी के खाने के लिये और पक्षी लपककर हाथ से वह चीज ले लेता l एक महाशय ने
तो एक पक्षी को पकड़ ही लिया l कुछ देर तक उसे पकडे रहने के बाद उन्होंने उसे उड़ा
दिया l लोगों का खूब मनोरंजन हो रहा था l सब को देखादेखी जब एक बच्ची हाथ में
बिस्कुट लेकर प्यार से पक्षी को खिलाने गयी तो उसने भी बड़े प्यार से बच्ची की
अंगुली में चोंच मार दिया l कुछ देर तक बच्ची रोती रही l मैंने चाहा की उस रोती
हुई बच्ची का फोटो ले लूँ लेकिन जब भी प्रयास करता वह दूसरी ओर मुँह घुमा लेती l फिर
भी मैंने उसका फोटो ले ही लिया l
उस पार आकर एक लस्सी वाले से १० रुपये की लस्सी पी l लस्सी बहुत
स्वादिष्ट थी l एक बेचने वाला विष्णुके दशावतार के एक साथ पत्थर का बना हुआ मूर्ति
लिये हुए था l उसने मुझसे खरीदने का बहुत आग्रह किया l दाम वह २०० बता रहा था l
मुझे नहीं लेना था अतः मैंने किसी प्रकार का मोल जोल नहीं किया l अंत में वह १२०
तक देने को खुद तैयार था l असल में मुझे पत्थर की मूर्ति को सजाकर रखना पसंद नहीं
l मुझे कागज का फ्रेम किया हुआ फोटो ही पसंद आता है l
बस थोड़ी दूर खड़ी थी l आकर बस में बैठा l बस जिस समय चली करीब १२.३५ हो
चुका था l करीब आधा घंटा बाद बस वापस द्वारका आ गयी l मैं तथा कुछ अन्य लोग
भद्रकाली चौक से आधा किलोमीटर पहले ही उतर गये l वे होटल में गये और मैं रेस्ट
हाउस के कमरे में आ गया l आकर आराम किया l
आज शाम को एक बार फिर द्वारकाधीश मन्दिर की ओर चला गया l लेकिन आज
देरसे निकला शाम ५ बजे के बाद वैसे भी यहाँ सूर्यास्त कुछ देर से होती है l चूँकि
२ दिन के भीतर ३ बार आ चुका था इस तरह अतः इस बार द्वारकाधीश मन्दिर पहुँचने में
कोई कठिनाई नहीं हुई l शाम को फूल की माला बेचनेवाले कल सुबह के मुकाबले सस्ते में
बेच रहे थे l १० रुपये में २ माला l माला में कमल का फूल भी था l जब ले लिया तो एक
१० में ३ कह रहा था l मुझे लगता है सस्ते में बेचने की वजह ये रही होगी की कल माला
के फूल मुरझा जाते l और एक प्रसाद बेचने वाले से ५० रुपये का प्रसाद भी लिया l
कल की तरह आज भी अन्दर पहुँचा l आज कल से कम भीड़ नजर आयी मुझे मन्दिर
के भीतर l उस समय की एक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा l मैंने जैसा की बतलाया है
अन्दर में अन्य १५ मन्दिर भी है l तो हुआ ये की मैं द्वारकाधीश वाले मन्दिर में
प्रसाद चढाने के लिये लाइन में लगने जा रहा था तो किसी एक मन्दिर के एक पुजारी ने
मुझे बुलाया l उन्होंने मुझसे संकल्प करवाना चाहा l मैंने नहीं किया l उन्हें बुरा
लगा l लेकिन यहाँ पर मेरा स्पष्ट मत है की किसी भी मन्दिर में जाकर पूजा करवाना या
दान देना अपनी इच्छा पर निर्भर करता है l धर्म का पालन स्वतः हो सकता है बाध्य
नहीं किया जा सकता l वृन्दावन से लेकर द्वारका तक मैं कम से कम ३०-४० मन्दिर जरुर
गया होऊँगा l अगर हर जगह मैं पूजा करवाता रहता और
पुजारियों को दान देता तो मैं खूब यात्रा कर लेता l मैंने ३-४ जगह ही
प्रसाद चढ़ाये l
वहाँ से हटकर आकर लाइन में लग गया l मेरे आगे १०-१५ लोग से ज्यादा
नहीं थे l पट अभी बंद था l करीब २० मिनट बाद खुला l दर्शन करने में ज्यादा समय
नहीं लगा l प्रसाद चढ़ाकर अन्दर में सारदा पीठ के मन्दिर में गया l कल मुझे जानकारी
नहीं थी अतः जा नहीं पाया था l अन्दर आदि शंकराचार्य की मूर्ति लगी हुई थी जाकर
प्रणाम किया l वहाँ एक शिवलिंग भी था l इस पीठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी
स्वरूपानंद सरस्वती का फोटो वहाँ लगा हुआ था l वहाँ दर्शन आदि करके और काउंटर से
१०० का प्रसाद लेकर आ गया l
बाहर आकर परिसर में स्थित सारदा पीठ के पुस्तकालय में गया l कल शाम को
आया था तो ये बंद था l वहाँ कोई कुछ देर बैठकर पुस्तक/मैगज़ीन आदि पढ़ सकता था तथा
पुस्तक और अन्य सामाग्री माला आदि खरीद सकता था l मैंने २ पोस्टर ३-४ पतली
पुस्तकें और एक सीडी ली l
जाकर एक होटल में भोजन किया फिर आज भी पैदल ही रेस्ट हाउस के कमरे में
आ गया l
रात को केयरटेकर ने चाय के लिये पूछा l मैंने मना किया l मैं प्रायः
चाय बहुत ठंढ रहने पर ही पीता हूँ l
अगले दिन सुबह फिर समस्या आयी भोजन की l ऐसे रेस्ट हाउस में किचन था
और बोलता तो यहाँ भी भोजन बन सकता था लेकिन ऐसे जगहों पर हर तरह के लोग आकर रुकते
है अतः मांसाहारी भोजन भी बनता ही होगा ऐसा मेरा सोचना था अतः वहाँ भोजन के लिये
नहीं बोला l मुझे फिर द्वारकाधीश मन्दिर के तरफ जाना पड़ता l और पाँचवी बार मेरी
उधर जाने की कोई इच्छा नहीं थी l स्टेशन के आसपास थोड़ा घुमा तो रेस्ट हाउस से पास
ही एक ठेला वाला पूरी सब्जी बनाकर बेचता था l उसका छोटा का दुकान भी था उसी के
बाहर ठेला लगा हुआ था l वहाँ मैंने ३० रुपये में १२ पुरी सब्जी खायी l पुरी का
आकार बहुत छोटा था l
मेरी ट्रेन १ बजे थी l registar में इंट्री आदि जो करना था करके आ गया
l मेरा ऊपर का सीट था l ट्रेन आने पर जाकर उसपर पसर गया l बाकी की सीट पर कोई नहीं
आया था l ३-४ स्टेशन बाद एक मुस्लिम फैमिली आकर बैठी l वे लोग मुम्बई जा रहे थे l उनके
और लोग भी बोगी में अलग सीट पर बैठे l उस परिवार की ३-४ औरतें वहाँ एक जगह ही बैठी
l उनके साथ एक छोटा बच्चा था l मैं ऊपर की सीट पर ही था l जब उस बच्चे की नजर मेरे
पर पड़ी तो उसने बड़े प्यार से मेरे तरफ देखा l उसने गुजराती में मुझसे कुछ कहा मुझे
आधा ही समझ में आया l बीच बीच में कभी कभी वह मेरी तरफ देखकर मुसकुरा देता था l वह
बच्चा था लेकिन नटखट l उनमें जो एक वृद्ध महिला थी वह उसकी नानी या दादी होगी एक
बार किसी बात पर उसने उनपर भी हाथ चला दिया l खैर बच्चे तो बच्चे ही होते है वे
अगर शरारत न करे तो भला कौन करेगा l जब वे भोजन कर रहे थे तो उसने मुझसे भी पूछा
खाने को मैंने मना कर दिया l
मेरी ट्रेन के अहमदाबाद पहुँचने का समय रात के १०.२५ मिनट था l आधा
घंटे पूर्व मैंने समान आदि लेकर नीचे आ चुका था l उस बच्चे ने गुजराती में मुझसे
पूछा अंकल आप कहाँ जा रहे हैं l उसके घरवालों ने उसे गुजराती में समझाया की ये घर
जा रहे है l मेरे साथ हरिद्वार से लिया गया झोला भी था जिसमें मैंने प्रसाद आदि
रखा हुआ था जिसपर हर की पौड़ी और भगवान् शिव की विशाल मूर्ति की आकृति दोनों तरफ
बनी हुई थी l उस बच्चे ने उस विषय में मुझसे जानना चाहा की ये क्या है इसपर मैंने
मौन ही रहना उचित समझा l अब दूसरे धर्म के एक अजनबी बच्चे को क्या समझाया जाय l
ट्रेन समय से अहमदाबाद स्टेशन पहुँच गयी l रास्ते में इस बार ड्राईवर
से बात हुई मालुम पड़ा की वे ब्राह्मण हैं और पुजारी भी l साल में १५ दिन की छुट्टी
लेकर जाते हैं तमिलनाडु के तरह किसी जगह का नाम उन्होंने बतलाया l उनका नाम
सुब्रह्मण्यम था l उन्होंने दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों के बारे में मुझे बतलाया l
अब विस्तारभय से आगे के बारे में कुछ विशेष नहीं कहना है l इस बार भी
साबरमती स्टेशन से ही २६ फरवरी को दिल्ली के लिये ट्रेन पकड़ा l मुझे छोड़ने जीजाजी
तथा उनका वही स्टाफ थॉमस आया था जो मेरे अहमदाबाद आने पर स्टेशन आया था l अगले दिन
दिल्ली पहुँचा और वहाँ अपने बड़े भाई के पास कुछ दिन रूककर १ मार्च को सम्पूर्ण
क्रान्ति से चलकर २ मार्च को पटना वापस आ गया l अहमदाबाद की तरह दिल्ली में भी कही
घुमने नहीं गया l
ब्रह्मकुमारिज मन्दिर में आर्ट गैलरी में एक का फोटो |
गीता मन्दिर |
गीता मन्दिर में दीवार पर गीता के श्लोक |
भद्रेश्वर महादेव |
सिद्धेश्वर महादेव |
स्वामीनारायण मन्दिर |
गुमनाम मुसाफिर |
डूबते सूर्य का नजारा |
रुक्मणी मन्दिर |
नागेश्वर महादेव परिसर में |
नागेश्वर महादेव मन्दिर |
गोपीनाथ मन्दिर |
बेट द्वारका |
गुमनाम मुसाफिर |
इन्होने ही पक्षी को पकड लिया |
इसी बच्ची को पक्षी ने चोंच मारा था |
जहाज का लंगर डालते हुए |
इसी बस से बेट द्वारका गया था |
रेस्ट हाउस |
इसी कमरे में ठहरा था |
अंत में साबरमती स्टेशन |