गंगासागर के विषय
में ये कहा जाता है कि ‘’सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार’’ l यहाँ पर गंगा आकर
सागर में मिलती है l यहीं पर कपिल मुनि के श्राप से भस्म हुए सगर के ६० हजार
पुत्रों को मुक्ति मिली थी l ऐसे तो गंगासागर में कपिल मुनि का मन्दिर स्थित है
लेकिन ये मंदिर बाद में निर्मित किया गया है प्राचीन मंदिर को सागर बहा ले गया था
l गंगासागर में गंगाजीको कोई मंदिर नहीं है बल्कि एक निश्चित स्थान पर हर साल मकर
संक्रान्ति के समय मेला लगता है, जिसमें लाखों की तादात में श्रद्धालु डुबकी लगाते
है l
ये हुई गंगासागर के
विषयमें कुछ जानकारी l अब अपना अनुभव बताना चाहूँगा l मैं एक बार पूर्व में
गंगासागर गया था लेकिन वह मेले का समय नहीं था l २६ जनवरी के समय वहाँ गया था उस
समय सागर तट बिल्कुल खाली था l उस समय मुश्किल से मुझे वहाँ १००-२०० लोग नजर आये
थे जिनमें से अधिकांश वहाँ के स्थानीय लोग थे l अस्तु मेरी इच्छा एक बार मकर
संक्रांति के समय गंगासागर जाने की थी l लेकिन समस्या थी वहाँ जाकर ठहरने की
क्योंकि इस समय वहाँ मौजूद सभी आश्रम, रेस्ट हाउस आदि में कमरे पहले से लोगों
द्वारा बुक करवा लिये जाते है l सरकार द्वारा उस समय टेम्पररी झोपड़े आदि जरुर
बनवाये जाते है लेकिन उसमें अकेले ठहरने में समान आदि की चिंता रहती ही है l फिर
अपने एक परिचित व्यक्ति के कहने पर अपने फेसबुक मित्र arka ghosh से सम्पर्क किया
l वे सरकारी डॉक्टर हैं तथा गंगासार मेले में वे भी डॉक्टर की टीम के रूप में जाते
है l वे श्री सीतारामदास ओमकारनाथदेवजी के
अनुयायी है l वहाँ श्री सीतारामदास ओमकारनाथदेवजी द्वारा प्रतिष्ठित श्री
योगेन्द्र मठ है l लेकिन वहाँ सिर्फ उनके दीक्षित लोगों को ही प्रायः ठहरने की जगह
मिलती है जोकी एक तरह से सही ही है क्योंकि ऐसा हर आश्रम में होता है l अगर ऐसा न
हो तो बाहर के लोग ही आकर जगह जमा ले और अनुयायियों को ठहरने को जगह ही नहीं मिले
l तो मेरे पूछने पर arka ghosh ने बतलाया की मेले के समय पूरा मठ भर जाता है l उस
समय जिसको जहाँ जगह मिलती है वही ठहर जाता है l उन्होंने कहाँ की अगर वे डॉक्टर की
टीम के रूप में गये तो मेरे लिये प्रयास करेंगे लेकिन कोई कह नहीं सकते की जगह मिल
ही पायेगी l तब मैं लगभग ये मान कर चल रहा था अब यहाँ ठहरने की व्यवस्था नहीं हो
पायेगी l मैंने तब गंगासागर के एक होटल वाले से फोन पर सम्पर्क किया l जब मैं
पीछले बार गंगासागर गया था तो यही पर भोजन किया था क्योंकि ये बिना लहसुन प्याज का
भोजन बनाता था l मैंने चलते समय उसका कार्ड ले लिया था l मेरे पूछने पर उसने कहा
की हाँ ठहरने की व्यवस्था हो जायगी l अस्तु इस ओर से अब मैं निश्चिंत था l
७ जनवरी को arka
ghosh ने मुझसे facebook पर पूछा की मैं आ रहा हूँ न l मैंने कहाँ हाँ l उसने
बतलाया की वह ९ जनवरी को ही डॉक्टर की टीम में वहाँ जायेगा l यहाँ एक बात बताना
चाहूँगा की इससे मेरा फोन पर या व्यक्तिगत तौर पर कोई सम्पर्क नहीं था l मैं
प्रायः फेसबुक मित्रों से व्यक्तिगत तौर पर सम्पर्क करनेसे बचता हूँ क्योंकि पूर्व
में मेरा १-२ लोगों के साथ अनुभव अच्छे नहीं रहे है l
गंगासागर जाने के
लिये पहले कोलकाता जाना पड़ता है l वहाँ से आगे की दुरी बस/ट्रेन/ और बीच में लॉन्च
तय करनी पड़ती है l कोलकाता से गंगासागर की दुरी करीब १३५ किलोमीटर है l मैंने १२
जनवरी को पटना से जनशताब्दी ट्रेन पकड़ा सुबह ५:४५ में जिसने करीब १:४५ में हावड़ा
स्टेशन पहुँचा दिया l वहाँ से मैं एक परिचित व्यक्ति के पास जाकर ठहर गया कोलकाता
में ही l
अगले दिन यानी १३
जनवरी की सुबह फ्रेश होकर बस पकड़कर मैं सियालदह स्टेशन आ गया l और नामखाना का टिकट
ले लिया l ट्रेन सुबह ७:१५ में खुली l मुझे आराम से उसमें बैठने की जगह मिल गयी l
नामखाना से दो स्टेशन पूर्व काकद्वीप पड़ता है वहाँ भी बहुत से यात्री उतरे l काकद्वीप
से भी उतरकर लॉन्च से कुचबेरिया जाता है और कुचबेरिया से स्थल मार्ग से गंगासागर
करीब ३० किलोमीटर है l खैर मैं भीड़ के ख्याल से काकद्वीप में नहीं उतरकर नामखाना
जाने का ही फैसला किया l ट्रेन ने करीब १०:१५ तक नामखाना पहुँचा दिया l वहाँ कुछ
देर रूककर भोजन आदि किया फिर फिर लॉन्च पकड़ने चला l करीब आधा किलोमीटर पैदल चलने
के बाद लॉन्च पर चढ़ने वालों की लम्बी कतार मिली जो करीब १ किलोमीटर की रही होगी l
मैं भी लॉन्च पर चढ़ने के लिये लाइन में लग गया l करीब डेढ़ घंटे बाद लॉन्च में जगह
मिल पायी l और १ घंटे से कुछ अधिक समय बाद लॉन्च ने जिस जगह उतारा उसका नाम संभवतः
चेमागुरी था l यहाँ एक बात बताना चाहूँगा की लॉन्च पर चढाने और उतारने की अच्छी
व्यवस्था की गयी थी प्रशासन और स्वयंसेवकों द्वारा l आगे फिर हम चेमागुरी से
गंगासागर के लिये बाकी का करीब १० किलोमीटर का सफ़र बस से करना था l उसके लिये भी
करीब आधा किलोमीटर की लाइन लगी हुई थी l लेकिन बस पर चढ़ने के लिये भगदड़ न मचे
इसलिए बाँस की बैरिकेटिंग की गयी थी और लोगों को भी आहिस्ता आहिस्ता जाने की घोषणा
माइक पर लगातार की जा रही थी l वहाँ भी काफी संख्या में स्वयंसेवक खड़े थे जोकी
एक-एक करके लोगों को बस में चढ़ा रहे थे तथा बस भी तुरंत रवाना होती थी भरते ही और
तुरंत अगली बस आ जाती थी l बस ने करीब २:१५ पर हमें गंगासागर के रोड नम्बर ५ पर
उतार दिया l वहाँ से मुझे रोड नम्बर १ में स्थित योगेन्द्र मठ पहुँचना था l रास्ते
में भीड़ था अतः करीब ४५ मिनट बाद मैं रोड नम्बर १ में पहुँचा l वहाँ योगेन्द्र मठ
ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि वहाँ अखण्ड हरिनाम संकीर्तन(हरे कृष्ण
हरे राम) चल रहा था जिसकी ध्वनि दूर से ही सुनाई दे रही थी l वहाँ पहुँचने पर मठ
की स्थिति देखकर थोड़ा मन में दुःख भी हुआ l देखकर लगता था कि यहाँ काफी समय से
दीवालों पर पेंट नहीं हुआ है l और मंदिर की अवस्था भी बाहर से जीर्ण थी l बाद में
arka ghosh ने बतलाया की मंदिर का जीर्णोद्धार होगा शीघ्र ही l यहाँ मेरे दुखी
होने की वजह ये थी कि श्री सीताराम ओमकारनाथदेव जी उन गिने चुने आचार्यों में से एक
रहे है जोकी शास्त्र पथ पर यथार्थ रूप से चलते रहे (धर्मसम्राट् करपात्री जी महाराज की भाँति) l
आज के अंग्रेजी सभ्यता से प्रभावित मष्तिष्क को वर्णाश्रम धर्म(वर्ण और जाति
जन्मना), आहार-शुद्धि, सती, विधवा विवाह निषेध, सह-शिक्षा(co-education) निषेध,
तलाक निषेध, तलाकशुदा स्त्री और पुरुषोंका आपस में विवाह निषेध, परपुरुष और
परस्त्री का आपस में मित्रता निषेध आदि पिछड़ापन लगे लेकिन यही असली सनातन धर्म है
l यही वजह है की दुनिया में न जाने कितनी सभ्यताएँ आयी गयी लेकिन अब उनका
नामोनिशान नहीं बचा l सनातन धर्म अपने मूल्यों के कारण सदा से रहा है और रहेगा भी
l हाँ उत्थान पतन तो चलता रहता है l
करीब १५ मिनट
प्रतीक्षा करनेके बाद arka ghosh अपने माता-पिता के साथ वहाँ आया l फिर वहाँ के
व्यवस्थापक से बात करके मेरे ठहरने के लिये नाटमण्डप में व्यवस्था कर दी गयी l शाम
को करीब ४ बजे वहाँ से नगर-कीर्तन निकाला गया l जोकी वहाँ से निकलकर सागर किनारे
होते-होते काफी दूर तक गया l मैं भी उसमें सम्मिलत हुआ l काफी आनंद आया l रात को
करीब ८.३० बजे प्रसाद (भोजन) मिला l भोजन की व्यवस्था ठीक ही थी कोई असुविधा नहीं
हुई l प्रसाद दो बार मिलता था एक बार दिन में करीब ११-१२ और रात में ८-९ बजे l
अगले दिन यानि १४
जनवरी को भी बहुत से लोग स्नान करके निकल रहे थे l लेकिन मुर्हत १५ जनवरी को सुबह
७:३४ में था इसलिये मैंने सागर में १५ को ही स्नान करने का फैसला किया l यद्यपि
सागर तट पास में ही था l १४ जनवरी सुबह उठकर मैं मठ में ही स्नान किया l फ्रेश
होने के बाद थोडा घुमने निकल पड़ा l लेकिन ज्यादा घूम नहीं पाया l भीड़ तो थी ही
रास्ते में बहुत से माँगने वाले बैठे l ज्यादातर जगह उनके वजह से चलना मुश्किल था
l मैंने उस दिन यथासंभव किसी को १,२,५ और किसी को दस रूपये भी दिये मन के भाव के
अनुसार l घूम-फिरकर फिर लौटने के क्रम में एक जगह दूकान से बिस्कुट आदि लेकर खाया
l वहाँ एक माँगने वाला पहुँचा l आवाज से वह शराबी प्रतीत हो रहा था l मेरे पूछने
पर उसने पैसे माँगे l मैंने पूछा कुछ खाना है उसने इनकार कर दिया और पैसा ही
मांगता रहा l मैंने नहीं दिया क्योंकि दान आदि पात्र को ही देना चाहिये कुपात्र को
नहीं l कुपात्र को देनेवाला दाता को उसके पाप का फल भोगना पड़ सकता है l
घूमकर करीब ८ बजे मठ
में आ गया l १२ बजे के करीब प्रसाद मिला l पहले साधु-संतों को दिया गया l फिर हमें
l प्रसाद पाकर फिर आकर आराम करने लगा l इस दिन भी शाम को करीब साढ़े ४ बजे
नगर-कीर्तन निकला l सुबह के नगर कीर्तन में मैं नहीं गया था लेकिन शाम को गया l
रात को उसी प्रकार ९ बजे प्रसाद मिला l
अगले दिन यानि १५
जनवरी को मकर संक्रान्ति थी l सुबह ७:३४ में स्नान का मुहर्त था l करीब ७ बजे सागर
तट पर पहुँच गया l आधा घंटा प्रतीक्षा करनेके बाद फिर स्नान किया l नारियल, फूल
आदि लेकर सागर तट पर स्नान करने के बाद एक ब्राह्मण से पूजा भी करवाया l फिर मठ
में वापस आकर वहाँ से कपिल मुनि के मंदिर गया l काफी भीड़ थी l एक लड़की भीड़ में
मेरे सामने गिर पड़ी और उसका पैर क्षतिग्रस्त हो गया जिसे दो-तीन पुलिसवालों ने
उठाकर एम्बुलेंस में डाला l भीड़ के कारण लोगों को मंदिर के भीतर नहीं जाने दिया जा
रहा था l नीचे से ही मंदिर के सामने से आगे निकल जाना था l वहाँ कतार में कई नागा
साधु बैठे थे l उनका फोटो खींचने का तो ख्याल नहीं रहा लेकिन प्रयास किया की सभी
को कुछ दे दूँ l वहाँ से वापस मठ आते-आते करीब साढ़े ११ बज गये l इस दिन भी पहले
साधु-संतों को भोजन दिया गया l भोजन करके निकलते-निकलते दोपहर के करीब डेढ़ बज गये
थे l यहाँ मैंने एक गलती कर दी थी l मुझे स्नान करके सुबह ही निकल जाना चाहिये था
l मुझे लोगों ने बतलाया था कि लॉन्च ३-४ बजे तक ही मिलती है l मैं कपिल मुनि के
मंदिर के दर्शन करने के लिये रुक गया था l मुझे एक दिन पूर्व ही कपिल मुनि के
मंदिर के दर्शन करने के लिये जाना चाहिये था l वहाँ से निकलकर बस पकड़ने चला तो
बहुत घूमकर जाना पड़ता था l खैर जैसे-तैसे बस अड्डा पहुँचा l रास्ते में कुछ
प्राइवेट वैन आदि थे लेकिन वे कुचबेरिया का मनमाना किराया माँग रहे थे l बस अड्डे
पर बहुत बुरी स्थिति थी l जो भी बस आती लोग उसमें चढ़ने के लिये दौड़ पड़ते l स्थिति
ये थी की भीड़ में मौजूद कुछ लोग कह रहे थे की वे ३-४ घंटे से खड़े है l मैं यद्यपि
अकेला था फिर भी मुझे चढ़ने में परेशानी हो रही थी l तब करीब ४५ मिनट बाद मैं एक बस
के छत्त पर बैठा l इससे पूर्व कभी भी बस की छत्त पर सफ़र नहीं किया था l बस ने करीब
साढ़े ४ बजे कुचबेरिया पहुँचा दिया l ३० रुपया किराया लगा l एक कंडक्टर बस की छत्त
पर था एक नीचे l बस की छत्त पर कंडक्टर ने किराया ले लिया था लेकिन कोई टिकट नहीं
दिया था l नीचे उतरने पर दूसरे कंडक्टर के पूछने पर मैंने बता दिया l आगे बढ़ा तो
देखा की रास्ते में कुछ लोग टिकट दे रहे हैं l हमने समझा की वे संभवतः बस का टिकट
दे रहे हैं लेकिन वे लॉन्च का टिकट दे रहे थे l ये भ्रम इसलिये हुआ क्योंकि आते
समय जब नामखाना होकर आया था तो टिकट लॉन्च के भीतर ही मिला था l कुछ और लोग भी
टिकट नहीं लिये थे l फिर आकर लाइन में लग
गया l लाइन कुछ देर तक तो बढ़ी लेकिन ६ बजे के बाद बिल्कुल नहीं l पूछने पर पता चला
की समुन्द्र में ज्वार नहीं है इसलिये लॉन्च बन्द है l वहाँ भी तथा गंगासागर में
भी हजारों लोगों जिनके साथ आये थे उससे बिछुड़ गये थे जिनकी घोषणा लगातार माइक पर
हो रही थी l जब मैं पीछले बार गंगासागर आया था तो उस समय जिस होटल में खाया था
उसके मालिक ने एक वृद्ध महिला के बारे में बतलाया था की ४ साल हुआ ये माताजी
गंगासागर के मेले में गुम हो गयी थी l कुछ
बता नहीं पायी अपने बारे में l तब मुझे आश्चर्य हुआ था की भला यहाँ भी कोई भटक
सकता है क्योंकि उस समय बिल्कुल भीड़ नहीं थी l इस बार आया और यहाँ का माहौल देखा
तब समझ में आया की क्यों कहते है ‘’सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार’’ l लाइन में
भी बहुत से लोग मिले जोकी कह रहे थे की उनके ग्रुप के कुछ लोग छुट गये पीछे l बगल
के लाइन में एक माताजी दुखी थी उनका बच्चा बिछुड़ गया था l इसपर एक व्यक्ति बोल रहे
थे की उनकी पत्नी भी छुट गयी l तो मैं चल दिया छुट गयी तो छुट गयी पिंड छुटा l एक
बुजुर्ग व्यक्ति बोल रहे थे की ३६ घंटे से खड़े है (उनके कहने का आशय ये था की आते
समय भी इसी बार २४ घंटे में वे खड़े-खड़े ट्रेन/बस आदि से आये और जाते समय भी) l एक
बुजुर्ग व्यक्ति बेहोश होकर गिर पड़े l उन्हें लाइन से बाहर निकालकर पानी आदि के
छींटे दिये गये तब वे होश में आये l एक व्यक्ति बहुत मजाकिया स्वभाव के थे वे कह
रहे थे – ‘’सब तीरथ बार बार गंगासागर बाप रे बाप’’ l वे कई लोगों पर कमेन्ट भी
करते रहते थे जैसे – ऐई बुढा बुढ़िया अब मत अइहा l फिर एक महिला जोकी अपने बच्चे को
लिये हुए थी जिसके साथ के तीन लोग पीछे छुट गये थे उनसे कह रहे की ये बच्चा जब बड़ा
होगा तो यहाँ आने का नाम नहीं लेगा l खैर करीब १२ बजे लाइन चलना शुरू हुआ l जब
लाइन डाइवर्ट करके हम लॉन्च घाट के पास पहुँचे एक लॉन्च खुलने के लिये तैयार था l
वह अन्य लॉन्च के मुकाबले बड़ा था l उसमें ५ हजार से अधिक ही आदमी गये होंगे l उसे
देखकर मुझे टाइटेनिक जहाज की याद ताजा हो गयी जोकी अपने पहले यात्रा में ही डूब
गया था l हमारे आगे लम्बी लाइन थी l वह लॉन्च
भरकर चली गयी l लेकिन तुरंत ही दूसरी लॉन्च आ गयी l जोकी आकर में उससे छोटी
थी l इस लॉन्च में हम सवार हुए l यहाँ लॉन्च पर चढाने की सही व्यवस्था थी लोगों को
धीरे-धीरे छोड़ा जा रहा था l करीब सवा २ बजे रात को लॉन्च ने हमें उस पार उतार दिया
l अब वहाँ से हमें काकद्वीप स्टेशन या बस अड्डे जाना था l मैंने ट्रेन से जाने का
फैसला किया l क्योंकि बस के मुकाबले ट्रेन से कम समय लगता है l कुछ दूर पैदल चलने
के बाद ठेलागाड़ी और टेम्पू आदि काकद्वीप स्टेशन जा रहे थे l वे ३० रूपये/प्रतिव्यक्ति
भाड़ा बता रहे थे l मुझे ये ज्यादा लगा क्योंकि मेरा अनुमान था की स्टेशन पास में
ही है और वहाँ के लिये १० रूपये बहुत है l इस मामले में मैं moodial प्रवृति का
हूँ l कभी अकेले रहा हूँ तो ऑटो रिज़र्व करके भी घुमा हूँ l तो अधिकाँश लोग तो
ठेलागाड़ी/ऑटो में जा रहे थे लेकिन मेरे जैसे कुछ लोग पैदल भी चल रहे थे l बाद में
अपनी मूर्खता पर हँसी भी आयी क्योंकि पैदल स्टेशन पहुँचने में करीब डेढ़ लगे थे और
मेरा अनुमान है की करीब ४-५ किलोमीटर तो मैं पैदल चल ही था l आगे बढ़ने पर करीब ३
बजे रात में एक रास्ते में एक दूकान से मैंने पानी की बोतल खरीदी क्योंकि प्यास के
मारे मेरा बुरा हाल था l बहुत लोग भोजन भी कर रहे थे लेकिन मैं प्रायः रात के १२
बजे के बाद भोजन नहीं करता l फ्रेश नहीं हुआ था इसलिए भोजन नहीं किया l रास्ते में
एक ग्रुप के कुछ लोग थककर सुस्ता रहे थे l आगे एक तरफ रास्ता सुनसान था और एक तरफ
रौशनी थी l वे लोग कुछ देर बाद बढ़ते मैं भी वही रुक गया l थोड़ी देर बाद एक साधु
आये l उनसे पूछकर वे अँधेरे रास्ते से बढ़े उसे कम दुरी का समझकर l उनके ग्रुप में
आठ लोग थे l उनके पास टॉर्च आदि था l मैं अकेला था इसलिये उनके साथ निकल लिया l रास्ता
उबड़ खाबड़ था l मार्ग बिल्कुल सुनसान था हमारे अलावा कोई नहीं चल रहा था केवल
बीच-बीच में ऑटो आदि स्टेशन जाते हुए मिल
जाते थे l बीच में सुस्ताने के लिये हम रुके भी l करीब १ घंटे चलने के बाद वे बात
किये की लगता है ये लम्बा वाला रास्ता पकड़ा गया उसमें कुछ का अनुमान था ये रास्ता
१५ किलोमीटर का है l जबकि कुछ का था की नहीं l अब मुझे लगा की अगर रास्ता १५
किलोमीटर का हुआ तो पता नहीं कब काकद्वीप स्टेशन पहुँचूँगा और कब वहाँ से सियालदह
l और मुझे रात को ८ बजे हावड़ा से पटना के लिये ट्रेन भी पकड़ना था l आगे जाकर वे फिर
सुस्ताने लगे l मैं कुछ देर रूककर फिर आगे
बढ़ा l अब पक्की सड़क थी l लेकिन सुबह का समय होने से सड़क सुनसान था l हाँ २००-४००
मीटर की दूरी पर कुछ लोग जाते नजर आ रहे थे l मुझे लगा कही स्टेशन पीछे तो नहीं
छूट गया l हाँ किसी प्रकार का भय तो नहीं लगा बस समय की चिंता हो रही थी l खैर
करीब १ किलोमीटर और चलने के बाद स्टेशन के पास पहुँचा जहाँ ऑटो वाले लोगों को उतर
रहे थे l वहाँ से भी स्टेशन जाने में करीब १५ मिनट लगा l स्टेशन पर गंगासागर से
लौटने वालों की काफी भीड़ थी l टिकट लेकर ट्रेन का प्रतीक्षा करने लगा l करीब पौने
५ बजे ट्रेन आई l भगदड़ न मचे इसलिये घोषणा की जा रही थी की आराम से चढ़े यहाँ ट्रेन
पर्याप्त समय तक रुकेगी l और २० मिनट बाद नामखाना से अगली ट्रेन आयेगी l मैं इसी
ट्रेन में चढ़ गया क्योंकि इन्तजार करना अब संभव नहीं था l खड़े-खड़े ही आना पड़ा l
करीब सुबह ७:४५ में ट्रेन सियालदह स्टेशन आ गयी l फिर वहाँ से बस पकड़कर जिनके पास
ठहरा था वहाँ आ गया l वहाँ फ्रेश होकर पूजा भोजन आदि करके करीब १० बजे सोने चला गया l करीब २ बजे तक सोता रहा l मेरा पहले
विचार था दक्षिणेश्वर काली आदि जाने का लेकिन थके होने की वजह से कहीं जाने की
इच्छा नहीं हुई l शाम को करीब ६ बजे बस पकड़कर पौने ७ बजे तक स्टेशन आ गया l ट्रेन
करीब २५ मिनट पूर्व आयी l बहुत से लोग गंगासागर से लौट रहे थे वे मिले स्टेशन पर l
ट्रेन ८ बजे चलकर सुबह ४:२५ सही समय पर पटना आ गयी l और ऑटो पकड़कर सुबह ५ बजे घर आ
गया l और इस प्रकार पूरी हुई मेरी गंगासागर की एक अविस्मरणीय यात्रा l आते समय कई
लोग कह रहे थे की वे अब दुबारा आने का नाम नहीं लेंगे l एक बुजुर्ग व्यक्ति ने
वापस सियालदह स्टेशन आने पर कान छुकड कहा की अब यहाँ आने का नाम नहीं लेंगे
हालाँकि मैंने उन्हें बतलाया भी की आम दिनों में यहाँ ऐसी भीड़ नहीं रहती l जहाँ तक
मेरा अपना मानना है तो मुझे तो कोई कष्ट महसुस नहीं हुआ आते समय l हाँ अगले कुछ
सालों तक मेरा वहाँ जाने का इरादा नहीं है लेकिन इसकी वजह ये है की मुझे उन
तीर्थों में भी जाने की इच्छा है जहाँ पूर्व में नहीं गया हूँ l
नामखाना स्टेशन के बाहर
नामखाना स्टेशन के बाहर
लॉन्च से चेमागुरी जाने के लिये लगी लाइन
लॉन्च से बाहर का दृश्य
चेमागुरी से गंगासागर जाने के लिये बस के लिये लाइन
योगेन्द्र मठ
ठहरने की जगह नीचे फुस ऊपर से चादर
योगेन्द्र मठ में गोशाला
यहाँ पर लोग प्रसाद पाते थे
नगर कीर्तन योगेन्द्र मठ से
१३ जनवरी सूर्यास्त के समय का दृश्य
arka ghosh फोटो लेते हुए
नगर कीर्तन
नगर कीर्तन
arka ghosh
किनारे के तरफ सुनसान तट
गुमनाम मुसाफिर
नगर कीर्तन
किनारे का सुनसान तट, १३ जनवरी
पाखंडियों का समूह जो जय जय कल्कि जय श्री कल्कि कह रहे थे
योगेन्द्र मठ
योगेन्द्र मठ के छत्त पर जप करता एक साधु
नगर कीर्तन, १४ जनवरी शाम को
नगर कीर्तन
नगर कीर्तन
सूर्यास्त का दृश्य, १४ जनवरी
१५ जनवरी सुबह स्नान के समय
स्नान करते लोग
बचाव दल
स्नान करने एकत्र हुए लोग
कपिल मुनि मंदिर दूर से
कपिल मुनि मंदिर में दर्शन के लिये लगी लाइन
सामानों का बाजार
एक निष्ठावान भक्त
कीर्तन
अभी भी मंदिर दूर है
अब मंदिर पास आ गया
कपिल मुनि मंदिर
कपिल मुनि मंदिर
कपिल मुनि मंदिर
कपिल मुनि मंदिर
खिलौनों की दूकान
कपडे की दुकान
लौटते यात्री
काली वेश में
स्नान कर गंगासागर से लौटते लोग
योगेन्द्र मठ में आये कुछ साधु
साधु भोजन करते साथ में उन्हें दक्षिणा भी दी गयी
गुमनाम मुसाफिर
गुमनाम मुसाफिर
बस पर चढ़ने वालों की भीड़
लॉन्च पर चढ़ने के लिये लगी लाइन
थककर लोग आखिर बैठ गये
यही कह रहे थे ''सब तीरथ बार बार गंगासागर बाप रे बाप''
आखिर लाइन चली
१५ तारीख के आधी रात का दृश्य
१६ तारीख सुबह ३ बजे साधुओं की मण्डली इनके साथ मैं भी बहुत दूर तक गया था काकद्वीप स्टेशन जाने के क्रम में
नामखाना स्टेशन के बाहर |
नामखाना स्टेशन के बाहर |
लॉन्च से चेमागुरी जाने के लिये लगी लाइन |
लॉन्च से बाहर का दृश्य |
चेमागुरी से गंगासागर जाने के लिये बस के लिये लाइन |
योगेन्द्र मठ |
ठहरने की जगह नीचे फुस ऊपर से चादर |
योगेन्द्र मठ में गोशाला |
यहाँ पर लोग प्रसाद पाते थे |
नगर कीर्तन योगेन्द्र मठ से |
१३ जनवरी सूर्यास्त के समय का दृश्य |
arka ghosh फोटो लेते हुए |
नगर कीर्तन |
नगर कीर्तन |
arka ghosh |
किनारे के तरफ सुनसान तट |
गुमनाम मुसाफिर |
नगर कीर्तन |
किनारे का सुनसान तट, १३ जनवरी |
पाखंडियों का समूह जो जय जय कल्कि जय श्री कल्कि कह रहे थे |
योगेन्द्र मठ |
योगेन्द्र मठ के छत्त पर जप करता एक साधु |
नगर कीर्तन, १४ जनवरी शाम को |
नगर कीर्तन |
नगर कीर्तन |
सूर्यास्त का दृश्य, १४ जनवरी |
१५ जनवरी सुबह स्नान के समय |
स्नान करते लोग |
बचाव दल |
स्नान करने एकत्र हुए लोग |
कपिल मुनि मंदिर दूर से |
कपिल मुनि मंदिर में दर्शन के लिये लगी लाइन |
सामानों का बाजार |
एक निष्ठावान भक्त |
कीर्तन |
अभी भी मंदिर दूर है |
अब मंदिर पास आ गया |
कपिल मुनि मंदिर |
कपिल मुनि मंदिर |
कपिल मुनि मंदिर |
कपिल मुनि मंदिर |
खिलौनों की दूकान |
कपडे की दुकान |
लौटते यात्री |
काली वेश में |
स्नान कर गंगासागर से लौटते लोग |
योगेन्द्र मठ में आये कुछ साधु |
साधु भोजन करते साथ में उन्हें दक्षिणा भी दी गयी |
गुमनाम मुसाफिर |
गुमनाम मुसाफिर |
बस पर चढ़ने वालों की भीड़ |
लॉन्च पर चढ़ने के लिये लगी लाइन |
थककर लोग आखिर बैठ गये |
यही कह रहे थे ''सब तीरथ बार बार गंगासागर बाप रे बाप'' |
आखिर लाइन चली |
१५ तारीख के आधी रात का दृश्य |
१६ तारीख सुबह ३ बजे साधुओं की मण्डली इनके साथ मैं भी बहुत दूर तक गया था काकद्वीप स्टेशन जाने के क्रम में |