मैं अपने वृन्दावन
वाले पीछले पोस्ट में उल्लेख कर चुका हूँ की चूँकि मुझे पटना से हरिद्वार या
दिल्ली के लिये किसी ट्रेन में सीट खाली नहीं मिली अतः पहले वृन्दावन आकर एक दिन
रूककर तब अगले दिन हरिद्वार के लिये निकला था l और मुझे बसन्त पञ्चमी वाला स्नान
तिथि ज्यादा पसंद आया था जोकि १२ फरवरी को पड़ता था l उससे पूर्व ८ फरवरी को मौनी
अमावस्या थी और उस दिन जैसा अखबार में पढ़ा २५ लाख लोगों ने डुबकी लगाई थी हर की
पौड़ी तथा अन्य घाटों पर तथा भीड़ को नियंत्रित करने के लिये उस दिन लोगों को क्रम
से स्नान करने भेजा गया था l अतः मेरा अनुमान था की चूँकि अर्द्धकुम्भ है इसलिये
बसन्त पञ्चमी के दिन भी स्नान के लिये काफी भीड़ होगी l हालाँकि उसके लिये तैयार था
मानसिक रूप से l वैसे मैंने हरिद्वार इस समय अर्द्धकुम्भ की वजह से ही जाने का
निश्चय किया वरना पूर्व में तीन बार जा चुका हूँ अतः घुमने के लिये ये मेरे लिये
कोई नई जगह नहीं थी l
तो वृन्दावन में एक
रात रूककर ११ फरवरी की सुबह ऑटो पकड़कर करीब ९ बजे मथुरा स्टेशन आ गया l साढ़े ९ बजे
मथुरा से ट्रेन पकड़कर जेनरल बोगी में चढ़कर करीब साढ़े १२ बजे नई दिल्ली रेलवे
स्टेशन पर था l मैंने नई दिल्ली से देहरादून जनशताब्दी में टिकट ले रखा था l मेरी
ट्रेन ३.२० में थी अतः मुझे करीब ३ घंटे प्रतीक्षा करनी थी l ट्रेन की प्रतीक्षा
करने लगा l ट्रेन २ बजे ही प्लेटफार्म पर लग चुकी थी लेकिन मुझे उसमें चढ़ने की कोई
हड़बड़ी नहीं थी l इस बार लैपटॉप साथ में लेकर चला था अतः उसपर फेसबुक खोलकर समय
व्यतीत करने लगा l तीन बजे के बाद ही जाकर ट्रेन में बैठा l ट्रेन समय से चल पड़ी l
अभी भी ठंढ ख़त्म नहीं हुई था अतः मैंने स्वेटर पहन रखा था l वृन्दावन में भी ठंढ
थी l अतः हरिद्वार में तो रहती ही l क्योंकि वह पहाड़ी इलाका है l शाम के समय डूबते
हुए सूर्य का फोटो भी खिंचा l हालांकि चलते ट्रेन से खींचने पर उतना साफ़ नहीं आ
पाता l
ट्रेन में तथा ऐसे
भी यात्रा करते समय मेरे साथ एक बात होती है जो मुझे अजीब लगता है l होता ये है की
कई लोग अक्सर मुझे ब्राह्मण समझ लेते है जबकि मैं राजपूत हूँ l तब मुझे बताना पड़ता
है की मैं ब्राह्मण नहीं हूँ l इसकी वजह ये है की मैं बड़ा सा शिखा रखता हूँ जो
हिन्दुओं को रखनी ही चाहिये l ये बात और है की आजकल अन्य जाति के हिन्दू की तो बात
दूर रही खुद ब्राह्मण बालक और युवकों में से अधिकाँश शिखा रखने में लज्जा महसूस
करते हैं l ये अपनी संस्कृति से अज्ञानता की वजह से होता है l ऐसे में मुझे कोई
ब्राह्मण समझता है तो इसमें भला मेरा क्या दोष ? इसी प्रकार गर्मी के मौसम में कई
बार मैं यात्रा पर निकलता हूँ तो धोती-कुर्ता पहनकर निकलता हूँ l जो विशुद्ध
भारतीय परिधान है l उस समय भी कई लोग मुझे स्वामी/महाराज जी आदि समझकर उन नामों से
संबोधित करने लगते है l पहले मुझे ये अजीब लगता था अब इसकी परवाह नहीं करता l जिसे
जो समझना है समझे मैं उन मामलों में समाज की परवाह नहीं करता जो भारतीय संस्कृति
सम्मत है l
मेरे बगल की सीट पर
जो बैठे थे वे भी मुझे इसी प्रकार ब्राह्मण समझ बैठे l खैर उनसे फिर चर्चा चल पड़ी
l मेरी ये आदत है की मैं वेवजह किसी को नहीं टोकता l मालुम पड़ा की उनका नाम महेश
है तथा वे दिल्ली के ही रहनेवाले है l वे भी हरिद्वार अर्द्धकुम्भ में ही जा रहे
थे l फिर ठहरने आदि की बात पर मैंने बतलाया की स्टेशनके पास किसी होटल/धर्मशाला
में ठहर जाऊँगा l वैसे भी स्टेशन से लेकर हर की पौड़ी करीब डेढ़ किलोमीटर की दुरी तक
होटल/धर्मशाला भरे पड़े हैं l उन्होंने बतलाया की वे अपने गुरुदेव श्रीराम शर्मा
आचार्य (गायत्री परिवार के संस्थापक) के शांतिकुंज में ठहरेंगे l इसके लिये
उन्होंने पहले से फोन पर बात कर ली है l मेरे पूछने पर की क्या वहाँ कमरा मिल
जायेगा l इसपर उनका कथन था की खाली रहने पर मिल जायेगा l वरना हौल में जगह मिलेगी
l मैं ये सोचकर उनके साथ वहाँ जाने को तैयार हो गया की पता नहीं भीड़ होनेसे स्टेशन
के पास कमरा मिले या न मिले l लेकिन मैंने उनसे पहले ही अपनी स्थिति स्पस्ट कर दी
थी की मैं वहाँ के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाऊँगा l क्योंकि मैं
स्वतन्त्र रूप से गीता आदि पाठ करता हूँ l इसपर उनका भी कथन था की वहाँ के
कार्यक्रम में भाग लेने की कोई बाध्यता नहीं है l (मैंने ये बात इसलिये कही थी
क्योंकि पूर्व में मेरा एक आश्रम में इस प्रकार का अनुभव रह चुका था ) l अतः मैं
वहाँ जाने को तैयार हो गया l चर्चा के दौरान उनका कथन था श्रीरामशर्मा आचार्य की
किसी पुस्तक के बारे में की उसको पढने के बाद किसी और धार्मिक पुस्तक को पढने की
जरुरत नहीं है l मैं इसपर मौन रहा l फिर ये पूछने पर की कहाँ-कहाँ की तीर्थयात्रा
आपने की है इसपर उनका कथन था की उनके लिये सब कुछ यहीं है (मतलब शांतिकुंज) l
ट्रेन हरिद्वार
पहुँचने का समय ७.३० रात में था l ये आधा घंटा देर से करीब ८ बजे हरिद्वार स्टेशन
पहुँची l यहाँ वृन्दावन और दिल्ली के बनिस्बत अधिक ठंढ थी l रौशनी से सड़क चमक रहा
था l स्टेशन के बाहर बहुत से पुलिस तथा सेना के जवान खड़े थे l हमें तुरंत ही स्टेशन से शांतिकुंज जाने के
लिये टेम्पो मिल गयी l मेरे हिसाब से स्टेशन से शांतिकुंज की दुरी ५ या ६ किलोमीटर
से अधिक नहीं होगी l लेकिन पुलिसवाले वाहनों को काफी घुमाकर भेज रहे थे l अतः रात
के समय १०-१२ किलोमीटर की दुरी जरुर जाना पड़ा होगा l हालाँकि ये करना बेकार ही था
क्योंकि उस समय वाहनों की विशेष भीड़ थी भी
नहीं l करीब पौने ९ बजे हम शांतिकुंज पहुँचे l सिक्यूरिटी चेक से गुजरने के बाद हम
अन्दर दाखिल हुए l वहाँ ठहरने के लिये एक फॉर्म भरना होता था जिसमे नाम,पता आदि
तथा ओरिजनल id दिखाकर उसका फोटो कॉपी लिया जाता था l ये तो खैर फॉर्मेलिटी है जोकि
अब हर जगह होता है l हा ये बाद अच्छी थी की वहाँ कोई भेदभाव नहीं था की जो दीक्षित
है उन्हें ही ठहरने दिया जायेगा जैसे बहुत से आश्रमों में होता है l फॉर्म भरने के
बाद हमें संभवतः अत्रि भवन में जगह दी गयी l वहाँ भवन का नाम प्राचीन ऋषियों के
नाम पर रखा गया है l हमें हौल में जगह मिली कमरा नहीं मिला l इसपर महेश जी का कथन
था की कमरा जो लोग फैमिली के साथ आते हैं उन्हें दिया जाता है पहले l
अब शांतिकुंज की बात
की जाय l नाम के अनुरूप ही वहाँ शान्ति विराज रही थी l परिसर बिल्कुल साफ़ सुथरा
तथा सुन्दर था l परिसर बहुत बड़ा था उसे एक बड़ा मोहल्ला ही कहा जाय तो बेहतर होगा l
जैसे बड़े शहरों में बिल्डर द्वारा सोसाइटी बसाई जाती कुछ उसी तर्ज पर वहाँ ऊँची
ऊँची बिल्डिंग बनी थी l महेश जी का कथन था की बहुत से लोग इसमें परमानेंट रहते हैं
l उनके साथ जाकर मैंने श्रीराम शर्मा आचार्य के समाधि के दर्शन किये l वह फूल से
बहुत अच्छी तरह से सजाई गई थी l अगले दिन कुछ विशेष कार्यक्रम भी था l
ठंढ काफी थी
भोजनोपरांत हमने जाकर जल्दी से रजाई और तोसक लेकर आये l उसके लिये संभवतः ५ और ८
रुपये प्रतिदिन के हिसाब से लगा था l पैसा महेश जी ने ही दिया हालाँकि मैं ही दे
रहा था l फिर आकर हम सो गये l सुबह उन्हें यज्ञ में शामिल होना था अतः उनकी योजना
४.३० बजे उठने की थी l हम दोनों मोबाइल में अलार्म लगाकर सोये l मेरी नींद तो पहले
ही खुल गयी लेकिन उनकी नहीं l वे ५ बजे के बाद उठे l वहाँ कार्यक्रम सुबह ३.३० से
ही शुरू हो जाता था l यज्ञ में शामिल होने के लिये धोती पहनना अनिवार्य था l मैं
एक धोती लेकर चला था अतः उन्होंने मुझसे भी यज्ञ में शामिल होने का आग्रह किया l
उन्होंने ये बतलाया की इस समय जो गायत्री परिवार के अध्यक्ष है(नाम मुझे याद नहीं
आ रहा) वे भी रहेंगे उस यज्ञ में l मैंने मना कर दिया l वे फ्रेश होकर आये फिर कुछ
देर बाद करीब पौने सात बजे मैं वहाँ से निकल गया l मेरा सुबह ही निकल जाने की वजह
हालाँकि मैंने उन्हें बतलाया की मुझे कमरा नहीं मिला ये है l हालाँकि मैं बहुत
सुविधापसंद नहीं हूँ अतः ये प्रमुख वजह नहीं थी l असल में गायत्री परिवार में वे
लोग स्त्रियों को यज्ञ में शामिल करवाते है तथा उन्हें गायत्री मन्त्र जाप करवाते
है l एक वैदिक सोच का होने की वजह से मेरे नजर में स्त्रियों तथा शुदों को गायत्री
मन्त्र जप करने का अधिकार नहीं है l तथा स्त्रियों को यज्ञ में शामिल होने का
अधिकार नहीं है l मेरे यज्ञ में शामिल नहीं होने की प्रमुख वजह यही थी l तथा वे
वर्ण को कर्म के आधार पर मानते है जिससे मैं असहमत हूँ l श्रीराम शर्मा आचार्य व्यक्तिगत रूप से बहुत
अच्छे व्यक्ति थे l उन्होंने अपना पूरा जीवन साधारण ढंग से जिया l किसी के बारे
में निष्पक्ष राय रखनी चाहिए l भले ही उनसे हमारी मतभिन्नता हो l वहाँ बाकी कोई
असुविधा नहीं थी l रहना और भोजन भी निःशुल्क था l तथा सुबह गरम पानी भी निःशुल्क
सभी को मिल रहा था l
वहाँ से निकलकर टेम्पो
पकड़कर हरिद्वार स्टेशन आ गया l आज बसन्त पञ्चमी का स्नान था लेकिन मुझे सड़क पर कोई
भीड़ नजर नहीं आयी l मैं हर की पौड़ी की तरफ बढ़ चला l एक रिक्शावाला पूछने लगा l
मैंने पहले उसे मना किया तब वह कहने लगा बोहनी करवा दीजिये १० रुपये में ले चलूँगा
l मैं तैयार हो गया l यहाँ के विषय में मुझे पहले से जानकारी है की
रिक्शा/टेम्पोवाले यात्री को लेकर होटल वाले के पास जाते है और उसमें उन्हें होटल
वाले के द्वारा कमीशन दिया जाता है l उसने भी पहले चाहा की मुझे महंगे होटल में ले
चले लेकिन मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी की मुझे धर्मशाला में भी रहने में कोई
समस्या नहीं है रात में तो शांतिकुंज में रूककर आया हूँ l फिर मुझे वह स्टेशन के
पास के ही रामानंदाचार्य मार्ग में ले गया l वहाँ जिस होटल में ले गया वहाँ कमरा
का रेट २५० बिना टीवी का और टीवी वाले का ३५० था l मैंने बिना टीवी वाला ही पसंद
किया l मैंने रेट कम करने को कहा वह तैयार नहीं था l और भी पास के २-३ होटल देखा
सब जगह २००-३०० के रेंज में रेट था l हा वह रिक्शावाला भी हर जगह पहुँचता था साथ
में l फिर मैं जाने लगा क्योंकि १५० तक में तो धर्मशाला में भी कमरा मिल जाता l बस
थोड़ा घूमना पड़ता क्योंकि बहुत से धर्मशाला में अकेले व्यक्ति को वे लोग कमरा नहीं
देते l फिर रिक्शावाले मुझे पहले जिस होटल में लेकर आया था वह २०० में कमरा देने
को तैयार हो गया l काफी ना नुकर के बाद मैं भी तैयार हो गया l मैं भी मन में ये
सोचकर तैयार हो गया चलो कोई बात नहीं ये रिक्शावाला भी ५०-१०० कमा ले l
फिर कमरे में आकर
फ्रेश होकर पूजा आदि करकर करीब ९ बजे हर की पौड़ी की तरफ निकल पड़ा l एक जगह ४५
रुपये में तीन आलु के पराँठे खाये l रास्ते में तो भीड़ नहीं ही थी हर की पौड़ी पर
भी भीड़ नहीं थी l नहाने के कपड़े साथ नहीं ले गया था इसलिये इस समय स्नान नहीं किया
l हर की पौड़ी के उस तरफ भगवान् शिव की विशाल प्रतिमा है जिसकी ऊँचाई ५० फीट से
अधिक ही होगी मेरे अनुमान से l और बार जब हरिद्वार गया था तो उस तरफ कभी पैदल नहीं
गया था l रास्ते में बाँस की बैरिकेटिंग की गयी थी ताकी लोगों की भीड़ होने पर उसे
काबु में किया जा सके l लेकिन कोई भीड़ थी नहीं सिर्फ पुलिस वाले खड़े नजर आये l मैं
भी उन बैरिकेटिंग से न जाकर किनारे-किनारे निकलकर उस पार पहुँच गया l भगवान् शिव
के विशाल प्रतिमा को सामने से देखना बहुत अच्छा लगा l कुछ देर वहाँ रूककर फोटो आदि
खींचकर मैं वापस उस तरफ हर की पौड़ी पर आ गया l वापस फिर होटल की तरफ चल पड़ा l
रास्ते में माँ के भण्डारे का प्रसाद पुरी,हलवा और सब्जी बँट रहा था l मैंने लेकर
खाये हालाँकि थोड़े देर पूर्व ही आलु के पराँठे खाये थे l आगे फिर गोरखनाथ जी के
आश्रम मन्दिर में गया l वहाँ भतृहरि जी की गुफा अभी भी मौजूद है जिसमें वे ध्यान
करते थे l मैंने भी कुछ देर बैठकर वहाँ ध्यान किया l फिर बिल्वकेश्वर महादेव
मन्दिर के दर्शन करने गया l रास्ते में बिल्कुल भीड़ नहीं थी l भीड़ कम होने की वजह
यहाँ के एक आदमी ने बतलाया की ४ दिन पहले मौनी अमावस्या था अतः जो लोग उसमें स्नान
किये वे चले गये इसलिये भीड़ नहीं है l एक जगह सिर्फ हरिद्वार अर्द्धकुम्भ का बोर्ड
लगाये पुलिस वाले खड़े थे l ये मन्दिर हर की पौड़ी से स्टेशन की तरफ आने के क्रम में
ही पड़ता है l ये काफी प्राचीन मन्दिर है तथा धार्मिक रूप से इस जगह का महत्व भी है
l इसके पास में ही गौरी कुण्ड भी है l वैसे एक गौरी कुण्ड केदारनाथ जाने के क्रम
में पड़ता है ये उससे अलग है l गौरी कुण्ड के पास बिल्कुल शान्ति थी l कुछ देर वहाँ
बैठा फिर वापस होटल में आ गया l
उस दिन बसन्त पञ्चमी होने की वजह से जगह-जगह लोग
पतंग उड़ाते दिख रहे l जगह-जगह पतंग फँसे नजर आ रहे थे l बहुत से बच्चे पतंग लुट रहे
थे l दिन भर में १-२ बार खुद मेरे पाँव कटे पतंग के धागे में फँस गये l
३ घंटे विश्राम कर
करीब साढ़े ३ बजे दुबारा हर की पौड़ी की तरफ निकला l इस बार स्नान करने का कपड़ा साथ
में ले लिया था l वहाँ एक झोला बिक रहा था l जिसपर दोनों तरफ हर की पौड़ी तथा
भगवान् शिव की प्रतिमा के चित्र थे l मुझे ये बहुत पसंद आया इसलिये मैंने ५० रुपये
में २ खरीद लिये l मैंने ये सोचकर भी लिया की मुझे इससे पोलीथिन का इस्तेमाल नहीं
करना पड़ेगा l खैर हर की पौड़ी पहुँचकर जाकर डुबकी लगाई l बहुत आनंद आया l पानी
यद्यपि ठंडा था लेकिन दिन का समय था इसलिये विशेष ठंढ नहीं लगी l फिर जाकर माया
देवी के मन्दिर के दर्शन किये l कहाँ जाता है की शरीर त्यागने के पूर्व इसी जगह
सती ने तप किया था l पास के गीता भवन भी गया l वहाँ से निकलकर होटल जाने के बजाय
तीसरी बार हर की पौड़ी की तरफ चल पड़ा ये सोचकर की अब आरती देखकर भोजन आदि करके ही
होटल में लौटूँगा l अभी आरती में करीब १ डेढ़ घंटे देर थी l अतः आस-पास घुमने लगा l
वहाँ विदेशियों के एक समूह पर नजर पड़ी l वे coin आदि देख रहे थे l उनके साथ एक
संस्कारहीन भारतीय लड़की थी जो सिगरेट पी रही थी उस जगह पर l एक सेना के जवान ने
उसे टोका की लड़की होकर सिगरेट पी रही हो l तब उसने कहाँ की लड़की क्या नहीं पी सकती
l सेना के जवान ने कहा की पी सकती है यहाँ नहीं l हालाँकि उसे पीने से नहीं रोका
गया l फिर पूछने पर की क्या वह इनकी गाइड है उसने बतलाया की नहीं बल्कि ये उसके
फ्रेंड है तथा वह मुम्बई की है l
करीब एक घंटे बाद
लोगों को आरती के लिये बैठाया गया l घाट पर इसके लिये दक्षिणा तो साल भर माँगा ही
जाता है l आज भी माँगा गया l मैंने भी ५१ रुपये दे दिये l यहाँ की आरती भव्य होती
है l फिर आरती देखकर भोजन करके वापस होटल आ गया l रास्ते में अगले दिन के लिये आधा
किलो अंगूर ख़रीदा l
हरिद्वार में इस बार
आकर मुझे नई बात मालुम पड़ी जो मालुम नहीं थी पहले l यहाँ से टूरिस्ट बस जाती है
बहुत से स्थानों के लिये और वहाँ के कुछ प्रमुख स्थल को घुमाकर वापस ले आती है l
चार धाम के बारे में तो मालुम था लेकिन अन्य जगह के बारे में नहीं l होटल वाले ने
एक पम्पलेट दिया जिसमे दो जगह का वर्णन था l एक हरिद्वार-ऋषिकेश के प्रमुख मन्दिर
होते हुए सुबह जाकर शाम वापस l और दूसरा हरिद्वार से देहरादून होते हुए मसूरी l
रेट था हरिद्वार-ऋषिकेश का १०० और मसूरी का २०० l हरिद्वार, ऋषिकेश तो मैं घूम
चुका था अतः उस बस में जाने की मेरी कोई उत्सुकता नहीं थी l हा मसूरी नहीं घुमा था
तथा रेट भी मुझे ठीक मालुम पड़ा इसलिये मैं तैयार हो गया मसूरी जाने के लिये l बस
सुबह ८ बजे ले जाती और रात को ८ बजे ले आती l मैंने पूछ भी लिया की और कोई अलग से
चार्ज नहीं है न होटलवाले ने कहा नहीं l बस देहरादून के funvally में अगर अन्दर
जाऊँगा तो टिकट खुद से लेना होगा l
अगली सुबह करीब साढ़े
५ बजे उठा l फ्रेश आदि होकर पूजा आदि से निवृत होकर करीब साढ़े ७ बजे नीचे आ गया l
वही से मुझे आदमी ले जाता बस में l मैं नीचे प्रतीक्षा करने लगा l मैंने बगल की
दुकान से बिस्कुट, मिक्सचर आदि खरीद लिया ये सोचकर की आगे जहाँ भोजन मिलेगा मुझे
वह पसंद आयेगा या नहीं l करीब आधे घंटे बाद आदमी आया और मुझे ले जाकर बस में बैठा
गया मेरी सीट पर l पहले मुझे केबिन में बैठाया गया फिर कहने पर पीछे की सीट दी गयी
l बस करीब सवा आठ बजे खुली १५ मिनट देर से l उस समय एक अजीब नजारा देखने को मिला l
एक बंगाली दम्पति लड़ रहे थे बस वाले से l हुआ ये था वे लोग जिसके द्वारा आये थे
उसे २ व्यक्तियों का ५०० दिए थे l और बस वाला संभवतः उसे जानता नहीं था l फिर बात
करके मामला निपटा l बस में मालुम पड़ा की लोगों से अलग-अलग भाड़ा लिया गया है किसी
से १८० तो किसी से २०० तो किसी से २५० l इसका कारण ये था की लोग अलग-अलग एजेंटो
द्वारा भेजे गये थे बस में l मेरे बगल के सीट पर एक वृद्ध व्यक्ति थे मुम्बई के l
उनका कहना था बस का किराया १५० ही है l इसपर मेरा कहना था की कोई भी एजेंट लाकर
यहाँ पहुँचा रहा है ४०-५० रुपये कमीशन लेगा ही वरना वह दुकान खोलकर क्यों बैठा है
l
बस चल पड़ी l उसने
सबसे पहले हमें देहरादून के funvally में पहुँचाया l मैंने नेट पर रात को चेक किया
था उसका टिकट ४५० से भी अधिक था l वैसे भी ऐसे जगह जाना मुझे विशेष पसंद नहीं l ये
जगह घोर सांसारिक व्यक्तियों के लिये ही उपयुक्त है जिन्हें मौज मस्ती करनी है l
बस ने हमें करीब साढ़े ९ बजे वहाँ पहुँचाया l साथ में एक गाइड भी था जो बीच-बीच में
जानकारी देता हुआ चल रहा था l वहाँ पहुँचने पर हमें बतलाया गया की ऐसे तो का टिकट
५६० का है अतः उस स्थिति में कोई ले नहीं पायेगा l अतः अगर हम उससे ३० रुपये का
पर्ची ले और ग्रुप के लिये अलग काउंटर है वहाँ दिखाये तो और १३० ही देना पड़ेगा l
बस यहाँ १०:४५ तक रुकेगी l मेरे जैसे ५-१० लोगों को छोड़कर लगभग सब गये l मैं तथा
मुम्बई के वे वृद्ध व्यक्ति जिनकी उम्र ७७ साल थी वे भी अकेले ही सफ़र कर रहे थे l हम
funvally के गार्डन में ही रुके l क्योंकि वहाँ घुमने पर कोई रोक नहीं थी l मैंने
गार्डन आदि के फोटो लिये l उनका कैमरा वहाँ फेल हो गया l फोटो खींचने पर वह
बार-बार ऑफ़ हो जाता था l जबकि उनका कथन था की उन्होंने इसमें नई बैटरी डाली है l
उनका कैमरा मेरे कैमरे से महँगा, बड़ा तथा ज्यादा ज़ूम होने वाला था लेकिन वह किस
काम का जब वह वक़्त पर काम न आये l उनके कैमरे का हर जगह यही हाल रहा l मैंने यहाँ
अंगूर, बिस्कुट आदि खाये l
एक घंटा देखते-देखते
निकल गया l बारिश भी चालु हो गयी l अतः हम बस में आकर बैठ गये l कुछ लोग घूमकर
वापस आ चुके थे l धीरे-धीरे सब आ गये l फिर बस चल पड़ी l रास्ते में गाइड बताता
चलता था की हम समुन्द्र से इतनी फीट की ऊँचाई पर आ चुके हैं l एक जगह ऊपर से उसने
बतलाया की नीचे देखे बस से सर्पाकार रास्ता नजर आया l हालाँकि चलती बस में अन्दर
से वह भी बारिश में फोटो ले पाना संभव नहीं था l फिर भी नजारों का हम आनंद लेते चल
रहे थे l फिर बस ने हमें प्रकाशेश्वर महादेव मन्दिर लेकर पहुँचा l वहाँ का शिवलिंग
सफ़ेद था उसके बारे में बतलाया गया की ये बर्फ का शिवलिंग था जोकि अब पत्थर का हो
चुका है l यहाँ बस २० मिनट रुकी l हमने जाकर मन्दिर के दर्शन किये और प्रसाद भी
पाया l ये मन्दिर अन्य मंदिरों से उस मामले में अलग था यहाँ लिखा था की ये निजी
मन्दिर है यहाँ दान देना मना है l
यहाँ से बस फिर चल
पड़ी l रास्ते में गाइड उसी प्रकार हमें बताता रहता था की हम समुन्द्र से कितनी
ऊँचाई पर हैं l एक जगह उसने हमें ऊपर की तरफ देखने को कहाँ l ऊपर पहाड़ पर एक जगह
सफ़ेद क्रॉस नजर आ रहा था l उसने बतलाया की इसे लवर्स पॉइंट कहा जाता है परन्तु अब
इसका नाम सुसाइड पॉइंट कहा जाने लगा है l उसने मसूरी के बारे बतलाया की इसे पहाड़ों
की रानी कहा जाता है l हम आगे बढ़ रहे थे तो बर्फबारी भी होने लगी थी l मैंने पहली बार
अपनी आँखों के सामने से ऐसी बर्फ़बारी देखी l टीवी पर देखने और सामने से देखने में
फर्क होता है इसे कोई भी समझ सकता है l बस ने हमें एक जगह जाकर रोका l बस वहाँ डेढ़
घंटे से अधिक देर तक रुकी l तब हमने खुले में बर्फ़बारी का आनंद लिया l कोई-कोई एक
दुसरे पर बर्फ के गोले फेंकने लगे l वहाँ पर पहाड़ी परिधान पहनकर ८० रुपये में फोटो
खिंचवाने की सुविधा थी l कई लोगों ने खिंचवाया मैंने नहीं l वहाँ पर कार,मकान,पेड़
सबपर बर्फ जम गया था l यहाँ आकर सबका यही कथन था की पैसा वसूल हो गया l एक जगह कुछ
लोग आग ताप रहे थे हमने भी बारी-बारी से आग तापा l
खा पीकर और
प्राकृतिक सौन्दर्य का भरपूर आनंद लेने के बाद हम बस में आ गये l उस समय करीब साढ़े
३ बज चुके थे l हमें केम्पटी फॉल भी जाना था l बस में आकर मालुम पड़ा की बस वहाँ
नहीं जायेगी l इसके पीछे कारण ये था बारिश होने की वजह से रास्ता थोड़ा खतरनाक हो
चुका था l बस वाले का कहना था की वह यहाँ से १५ किलोमीटर दूर है l अगर चलना चाहे
तो चल सकते हैं अपने रिस्क पर l १-२ लोगों को छोड़कर कोई तैयार नहीं हुआ l बाद में
वे भी मान गये l बस में कुछ लोगों का कथन था की बस वाले ने ५०० का तेल बचा लिया
यहाँ न जाकर l फिर बस हमें लेकर मसूरी झील आयी l वहाँ का नजारा भी अच्छा था l १० रुपये
टिकट लगे l पानी में बतखें तैर रही थे l और कुछ दुकाने भी थी l मैंने कुछ फोटो
खींचे और वापस आ गया बस में l बगल में मकई का भुट्टा बिक रहा था ४० रुपये में l
कहीं कहीं ये पहाड़ी लोग भी न बिल्कुल लुट मचा रखते है l मेरे बगल में एक गुजराती
दम्पति यात्रा कर रहे थे l उनकी पत्नी बोली की हमारे यहाँ ये १० रुपये में मिलता
है l ये लोग सोमनाथ के थे l मुझे भी कुछ दिनों बाद सोमनाथ और द्वारका की यात्रा
करनी थी अतः उनसे वहाँ की जानकारी ली l
बस मसूरी झील से
करीब ४.४५ में चली l सात बजे के करीब बस ने एक जगह रोक दिया की यहाँ बस आधा घंटा
रुकेगी भोजन आदि के लिये l इसपर कुछ लोग मन में नाराज हुए की आधा घंटा में तो ये
हरिद्वार पहुँच जाती l मेरे साथ बैठे हुए मुम्बई वाले भी नाराज थे l उनका कथन था
की बस वालों का रास्ता में होटल फिक्स रहता है l जहाँ ये रोकते है वहाँ यात्री
खाते है उसके एवज में होटल वाला इन्हें मुफ्त में खिलाता है l पता नहीं इसमें
कितनी सच्चाई है l खैर कुछ ही लोग उतरकर होटल में गये l
बस ठीक आठ बजे हरिद्वार पहुँच गयी l
वहाँ पहुँचने पर बस के गाइड ने सबसे पूछा आज की यात्रा कैसी रही ? सबने कहा बहुत
अच्छी l इसपर गाइड ने कहा आजकी शाम आपलोगों के नाम l यहाँ बता दूं की मैं जिस बस
से गया था उसी परिसर में माया देवी का तथा गीता भवन भी था l पूर्व में भी यहाँ कई
बार आया हूँ लेकिन मुझे मालुम नहीं थी की यहाँ से इस प्रकार बस चलती है यात्रियों
को लेकर घुमाने l
बस से निकलकर जाकर रास्ते में एक जगह
खाना खाया l बारिश हो रही थी अतः तुरंत खाना खाकर होटल में चला गया l आज कल से
अधिक ठंढ थी l जाकर पूजा आदि करकर सामान को अभी ही बैग में डाल लिया क्योंकि मुझे
सुबह ६:२५ में ही दिल्ली के लिये देहरादून जनशताब्दी पकडनी थी l सुबह साढ़े चार बजे
उठकर फ्रेश आदि होकर पूजा करके मस्का खाया (मस्का गुड के ऊपर तिल साटकर बनाया जाता
है l ये मकर संक्रांति के समय मुख्यतः मिलता है बिहार में) l अपने साथ ये एक किलो
से ऊपर लेकर चल था रोज सुबह नास्ते से पूर्व खा लेता था l
ट्रेन दिल्ली पहुँचने का समय ११.१५ था
l उसने ११.२१ में पहुँचाया l केरला एक्सप्रेस ११.२५ में थी l अगर मैं ये ट्रेन
नहीं पकड़ता तो अगली ट्रेन १.२० में मिलती l २ घंटे इंतजार करने के बजाय मैंने इसे
ट्रेन को पकड़ने का फैसला किया l नेट से पता किया की केरला एक्सप्रेस कितने नंबर
प्लेटफार्म पर आती है l बस दौड़कर ट्रेन पकड़ लिया l अगर मेरी ट्रेन २-३ मिनट भी देर
हुई होती तो ये ट्रेन नहीं पकड़ पाता l टिकट कटाने का समय था भी नहीं l ये ट्रेन
सुपरफास्ट थी २ घंटे में इसने मथुरा पहुँचा दिया और वहाँ से दुबारा वृन्दावन आ गया
l
अहमदाबाद से सोमनाथ की यात्रा का
वर्णन अगले पोस्ट में
अब फोटो (कुछ वजहों से अपलोड करते समय फोटो इधर-उधर हो गये फिर भी मुझे कौन फोटो कहाँ का है ये याद है l )
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१३ फरवरी मसूरी झील के पास की दुकानें |
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१३ फरवरी मसूरी झील |
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१३ फरवरी मसूरी झील के पास का एक झरना |
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मसूरी में आग तापते हुए |
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मसूरी, कार पर जमी बर्फ |
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मसूरी, बर्फ़बारी के बाद बारिश |
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मसूरी, पेड़ो पर जमा बर्फ |
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मसूरी |
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मसूरी झील के पास |
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मसूरी झील में तैरते बतख |
|
१४ फरवरी सुबह, हरिद्वार स्टेशन |
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प्रकाशेश्वर महादेव |
|
प्रकाशेश्वर महादेव |
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मसूरी, बर्फ़बारी बस के अन्दर से |
|
मसूरी |
|
मसूरी |
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भतृहरि की गुफा |
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गोरखनाथ मन्दिर |
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माया देवी का मन्दिर |
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बन्दर |
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गीता भवन, अन्दर अँधेरा था इसलिये फोटो साफ़ नहीं आया |
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गीता भवन |
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गीता भवन |
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गीता भवन |
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हरिद्वार १२ फरवरी, पेड़ो में फँसे पतंग |
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खूब पतंग लुटा इन्होने |
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खाली सड़के |
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एक दुकानदार |
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कोई फल |
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हर की पौड़ी का प्रमुख मन्दिर |
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हर की पौड़ी के आसपास का नजारा |
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शाम की आरती के समय |
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आरती के समय |
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आरती के समय |
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रात का नजारा, हर की पौड़ी |
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हर की पौड़ी के पास खड़े जवान |
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fun VALLEY के अन्दर |
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विल्वकेश्वर महादेव जाने का मार्ग |
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विल्वकेश्वर महादेव की कथा |
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विल्वकेश्वर महादेव मन्दिर |
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गौरी कुण्ड |
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विल्वकेश्वर महादेव जाते समय रास्ते में पहाड़ के नीचे गंदगी का अम्बार |
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पतंग की दुकान |
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विदेशी सिक्के देखते हुए |
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भीड़ कंट्रोल करने के लिये बाँस की बैरिकेटिंग |
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भगवान् शिव की प्रतिमा पीछे पहाड़ पर मनसा देवी का मन्दिर है |
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हर की पौड़ी |
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मायादेवी का माहात्म्य |
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गीता भवन |
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खाली सड़के |
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आरती के लिये शाम के समय बैठे लोग |
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आरती |
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इसी बस से मसूरी गया था |
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प्रकाशेश्वर महादेव बाहर से |
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मसूरी |
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मसूरी |
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मसूरी झील |
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शांतिकुंज, ११ फरवरी रात |
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पतंगबाजी |
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किसी महाराज की निकलती सवारी, शायद ये गोल्डन बाबा थे |
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डूबता सूर्य का दृश्य ट्रेन से |
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गुमनाम मुसाफिर शांतिकुंज में |
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महेश जी |
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श्रीरामशर्मा आचार्य की समाधि |
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समाधि के पास सजावट |