वृन्दावन जाने की पहले से कोई योजना
नहीं थी l पहले ये विचार था की हरिद्वार अर्द्धकुम्भ जोकि २२ अप्रैल को समाप्त हो
रहा है तथा उज्जैन में कुम्भ जोकि २२ अप्रैल से शुरू होकर २१ मई तक चलेगा दोनों
में एक साथ जाकर शामिल हो जाऊँगा l फिर लेकिन विचार आया की हरिद्वार अर्द्धकुम्भ
में इसी समय जाकर हो आता हूँ l उज्जैन कुम्भ का जब समय आयेगा तब देखा जायेगा l
मैंने स्नान की तिथि पता की तो मालुम पड़ा की १२ फरवरी को बसन्त पञ्चमी के दिन है l
उससे पहले ८ फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन था l लेकिन मुझे बसन्त पञ्चमी के दिन
वाला ही पसंद आया l अब वहाँ जाने के लिये ट्रेन में चेक किया तो हरिद्वार या
दिल्ली के लिए किसी ट्रेन में सीट खाली नहीं l फिर ख्याल आया की चलो मथुरा होकर
वहाँ पहुँचता हूँ वैसे भी कुछ दिनों से वृन्दावन जाने की इच्छा मन में उठ रही थी l
लेकिन पहले जहाँ मेरा विचार सिर्फ हरिद्वार जाने का था होते-होते वृन्दावन के बाद
सोमनाथ और द्वारका जाने की भी योजना बन गयी l इसके पीछे की कहानी ये है की मेरी
बड़ी दीदी अहमदाबाद में रहती है उनसे बाद ऐसे ही बात हुई और मैं हरिद्वार, वृन्दावन
के बाद वहाँ जाने के लिये तैयार हो गया क्योंकि वहाँ से सोमनाथ और द्वारका नजदीक
पड़ता है l इसका उल्लेख इसलिये आवश्यक है
क्योंकि ये यात्रा लगातार चली l
तो सबसे पहले मैंने मथुरा का टिकट
लिया ९ फरवरी के ट्रेन में जिसने मुझे अगले दिन सुबह करीब ४ घंटे देरसे ११ बजे मथुरा
पहुँचा दिया l वहाँ से वृन्दावन करीब १२ किलोमीटर दूर है l वैसे पूर्व में यहाँ २
बार आ चुका हूँ लेकिन कुछ स्थान वैसे होते है जहाँ बार-बार आने की इच्छा होती है l
वृन्दावन में आकर अथखम्भा रोड में आकर उसी धर्मशाला में ठहरा जहाँ पूर्व में ठहरा
था l अगले दिन सुबह मुझे हरिद्वार के लिये निकलना था इसलिये उस दिन वृन्दावन में
ज्यादा नहीं घुमा l पास में निधिवन था अतः वहाँ उस दिन गया था l निधिवन वह स्थान
है जिसके बारे में कहाँ जाता है की आज भी रात्रि को वहाँ रासलीला चलती है l अतः
शाम के बाद वहाँ किसी को भी रुकने की अनुमति नहीं होती l कहा जाता है की जिसने भी
वहाँ रुकने की कोशिश की वह पागल हो गया या उसकी मृत्यु हो गयी l निधिवन में ही
हरिदास जी ने बाँके बिहारी को प्रकट किया था और उनकी समाधि भी वहाँ बनी हुई है l अगले
दिन यानी ११ फरवरी को सुबह करीब ९ बजे मथुरा स्टेशन पहुँचकर नई दिल्ली का जनरल का टिकट किया l करीब साढ़े १२
बजे नई दिल्ली स्टेशन पर था l मेरी ट्रेन ३.२० पर थी जिसने करीब ८ बजे मुझे
हरिद्वार पहुँचा दिया l हरिद्वार में १२-१३ फरवरी को रूककर १४ फरवरी को दोपहर ३
बजे दुबारा वृन्दावन में आकर फिर उसी धर्मशाला में रुका l उस दिन शाम को उसी रोड
से भगवान् कृष्ण की झाँकी निकल रही थी घोड़े जुटे रथ में l मैंने भी जाकर दर्शन
किये l और जिस समय मैं पहुँचा उस समय धर्मशाले में काफी भीड़ थी l व्यवस्थापक से
मालुम पड़ा की करीब ६० लोगों का ये ग्रुप मध्यप्रदेश से कही से आया है l वे लोग
अपने साथ हलवाई को भी साथ लेकर आये थे l इससे पहले जब एक दिन के लिए वृन्दावन आया
था तो १०० रुपये वाले कमरे में ठहरा था l लेकिन इस दिन मालुम पड़ा की १०० वाला कोई
कमरा खाली नहीं है l २०० वाला कमरा खाली है l कल खाली हो जायेगा l तब मैंने हाल
में रुकने की इच्छा व्यक्त की तब मालुम पड़ा की उसमे जो ६० लोगों का ग्रुप है वे
लोग उसमे ठहरेंगे l अतः एक दिन के लिए २०० वाला कमरा ले लिया l वृन्दावन आकर थोड़ी
थकान थी अतः इस दिन किसी मन्दिर के दर्शन करने नहीं गया l मुझे १७ फरवरी तक
वृन्दावन में ही रुकना था अतः कोई हड़बड़ी नहीं थी l वैसे भी मैं आराम से घूमना पसंद
करता हूँ l अगले दिन यमुना के किनारे – किनारे घुमने निकल पड़ा l वृन्दावन में
हजारों मन्दिर है l अतः कोई सभी मंदिरों के दर्शन नहीं कर सकता l कुछ ख़ास मंदिरों
में ही गया ३ तीन दिनों में l कही-कही एक से अधिक बार भी गया l १५ फरवरी को
सिद्धपीठ इमलीतला गया फिर रास्ते में कुछ मंदिरों के दर्शन करते हुए जगन्नाथ घाट
पर जगनाथ मन्दिर के दर्शन किये l भगवान् जगन्नाथ का विग्रह एक वैष्णव भक्त हरिदास
के अपूर्व प्रेम के कारण वृन्दावन में आया था l यहाँ मन्दिर के भीतर २-३ लोग हरे
कृष्ण हरे राम महामंत्र का जाप कर रहे थे l मैं भी उनके साथ बैठकर कुछ देर तक
कीर्तन में शामिल हुआ फिर प्रसाद पाकर बाहर आया तो देखा की चप्पल गायब l वैसे मेरे
लिये ये कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि साल में १-२ बार चप्पल गायब हो ही
जाते है जब तीर्थ यात्रा पर होता हूँ l फिर घूमते हुए श्री हरिदास जी के भजन स्थली
टटिया स्थान पहुँचा l यहाँ अपूर्व शान्ति है l यहाँ रेत बिछा हुआ है जोकि दिन में
भी ठंढा रहता है भजन लायक ये उत्तम स्थल है यहाँ कोई व्यवधान नहीं डालता l बस
बन्दर से सतर्क रहने की आवश्यकता है l
वृन्दावन में बंदरों द्वारा लोगों का
समान छिन लेना, माला प्रसाद छिन लेना आम बात है l खुद मेरे सामने जगनाथ घाट के
मन्दिर में तथा टटिया स्थान में मैंने बन्दर द्वारा थाली में से रोटी लेकर भागते
देखा l अतः प्रायः लोग क्या करते है की जब कुछ लोग भोजन करने बैठते है तो एक
व्यक्ति लाठी लेकर खड़ा रहता है l लाठी देखकर बन्दर पास नहीं आता l जिस धर्मशाले
में ठहरा था वहाँ भी व्यवस्थापक जब बाहर में अपने कपडे सुखने डालते हैं तो वे लाठी
लेकर पास ही बैठे रहते है l वैसे वृन्दावन में बन्दर का भुक्तभोगी मैं भी हूँ l
पिछले साल जब यहाँ था तो वृन्दावन से जब गोवर्धन गया था तो अपनी धोती को सुखने डाल
गया था l वापस आया तो खबर मिली की बन्दर ने मेरी धोती जंगले से खींचकर फाड़ डाली है
l चूँकि बन्दर कूदकर कही से कही पहुँच जाते है अतः बालकोनी को लोहे की जाली से
घेरकर रखा जाता है l इस बार भी एक दिन धर्मशाले में एक माताजी का माला लेकर बन्दर भाग
गया l फिर जब उसको पुड़ी फेंकी गयी तो उसने
एक माला फ़ेंक दिया लेकिन एक माला को तोड़-तोड़ कर चबाने लगा l
टटिया स्थान के बाद घूमते-घूमते
दावानल कुण्ड में स्थित श्रीहरिबाबा के आश्रम पहुँचा l असल में मुझे श्रीहरिबाबा
की जीवनी लेनी थी l वे संकीर्तन के आचार्य थे l उन्होंने संकीर्तन के बलपर उत्तर
प्रदेश में स्थित गवां के तरफ बाँध बंधवा दिया था l जिस जगह पर उन्होंने बाँध बनवा
दिया था वहाँ अभी भी ४७ वर्षों से अखण्ड कीर्तन चल रहा है l इसके अलावा भी
श्रीहरिबाबा से जुड़ी हुई बहुत सी घटनाएँ है संकीर्तन से जुड़ी हुई l वहाँ के
व्यवस्थापक से जाकर जब मैंने श्री हरिबाबा की जीवनी माँगी तो उन्हें थोड़ा आश्चर्य
हुआ की मैं इस स्थान पर कैसे पहुँचा l फिर मैंने बतलाया की फेसबुक के एक मित्र
ब्रजेश चन्द्र यादव ने इस जगह का पता दिया था की यहाँ श्रीहरिबाबा की जीवनी मिल
जायगी l वे उसे पहचानते थे उन्होंने उसके द्वारा whatssap पर शेयर की हुई ललिता
प्रसाद की फोटो भी दिखलायी जिन्होंने श्रीहरीबाबा की जीवनी लिखी थी l वहाँ करीब
सवा घंटा रुका l वहाँ के लोगों ने मुझसे ठहरने के बारे में पूछा l तो मैंने बतलाया
की मैं अथखम्भा रोड के एक धर्मशाले में ठहरा हूँ l वृन्दावन के कई जगह की तरह यहाँ
भी गोसेवा हो रही थी देखकर अच्छा लगा l यहाँ भी बन्दर का एक काण्ड नजर आया l कही
से वे फूलों की माला ले आये थे और उसे तोड़कर खा रहे थे l ये देखकर बहुत हँसी आयी l
वहाँ का मन्दिर ३ बजे के बाद खुलता था l अतः रूककर मन्दिर के दर्शन करके वापस
धर्मशाले में आ गया l
अगले दिन यानि १६ फरवरी को फिर घुमने
निकला l चूँकि ठंढ का मौसम था अतः उठने में देर हो जाती थी l ९ बजे के बाद ही घुमने
निकल पाया l विद्यापीठ चौराहा आकर इस्कोन मन्दिर तथा प्रेम मन्दिर की तरफ वाले
रास्ते में पैदल चल दिया और जाकर पहले चप्पल खरीदी l फिर एक पंजाबी होटल में ३०
रुपये में २ आलु पराँठे उदरस्थ किये l फिर
इस्कोन मन्दिर तथा प्रेम मन्दिर दर्शन करने गया l इस्कोन मन्दिर में पाश्चात्य
प्रभाव पूरी तौर पर देखा जा सकता है l वह मन्दिर कम कोई शानदार होटल ज्यादा नजर
आता है l वहाँ काफी संख्या में अंग्रेज मौजूद नजर आये l वहाँ फोटो खींचने पर कोई
रोक नहीं थी l वहाँ एक बात अच्छी थी की सुबह शाम खिचड़ी का प्रसाद बँटता था l फिर
कृपालु जी के प्रेम मन्दिर गया l आजकल उसकी गिनती वृन्दावन के प्रमुख मंदिरों में
होती है l वह हैं भी एक शानदार मन्दिर l उसके निर्माण के लिये इटली से मार्बल
मँगवाया गया था l उसके निर्माण में सैकड़ो करोड़ खर्च हुए थे l वहाँ मन्दिर पर बनी
हुई चित्रकारी तथा गार्डन देखने योग्य है l वहाँ मैंने काफी फोटो लिए मन्दिर परिसर
में l फिर जाकर बाँके बिहारी मन्दिर जिसका विग्रह श्रीहरिदास ने प्रकट किया था
उसके दर्शन किये l बगल में ही स्नेह बिहारी मन्दिर है भागवत कथा वाचक मृदुल कृष्ण
तथा गौरव कृष्ण गोस्वामीजी का l उसके भी दर्शन की l वैसे तो बीच-बीच में और भी
मन्दिर थे जिनके मैंने दर्शन किये थे हालाँकि उनके नाम याद नहीं है l फिर टटिया
स्थान की तरफ चल पड़ा l जहाँ कल भी गया था l वहाँ जाने का मुख्य मार्ग है यमुना के
किनारे-किनारे होते हुए पक्की सड़क से l मैंने पक्की सड़क छोड़कर बीच गली से गया l
बीच-बीच में कुछ मन्दिर मिलते गये l एक मन्दिर नजर आया जिसके बारे में लिखा था की
कृष्ण भयो रघुनाथ l ऐसा प्रसिद्द है की गोस्वामी तुलसीदास को श्रीकृष्ण विग्रह के
राम के रूप में दर्शन हुए थे वृन्दावन में l मन्दिर के पट उस समय बंद हो चुके थे
अतः दर्शन नहीं हो पाये l रास्ते में और भी कुछ मन्दिर आये थे l दिन के करीब साढ़े
१२ बजे टटिया स्थान पहुँचा l और जाकर बालु पर बैठकर नाम-जप आदि करने लगा l मन्दिर
साढ़े ४ बजे खुलना था l मैं उस समय तक वही रहा l आराम से नाम जप किया l शाम को कुछ
लोग वहाँ बालु पर झाड़ू लगाकर बिखरे पट्टे बटोर रहे थे l मैंने भी कुछ देर झाड़ू
लगाई l शाम को मन्दिर के विग्रह के दर्शन कर वहाँ से निकला l फिर थोड़ी दूर पर ही
स्थित जगनाथ घाट के मन्दिर के दर्शन करने आज भी गया l फिर दुबारा मुख्य सड़क छोड़कर
बीच से ही निकलकर वंशीवट पहुँचा l वह भी वृन्दावन का एक मुख्य स्थल है भगवान्
कृष्ण से जुड़ा हुआ l पास में ही प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के स्मृति में बना हुआ
मन्दिर था वहाँ परिसर में सामूहिक सुन्दरकाण्ड का पाठ हो रहा था तथा संकीर्तन भी l
मैंने भी थोड़ी देर बैठकर कीर्तन किया l फिर आगे निकलकर ब्रह्मकुण्ड के दर्शन किये
बगल में उसके बारे में विवरण लिखा हुआ था l फिर वहाँ से थोड़ी दूर पर रंगजी का
मन्दिर था जिसके दर्शन किये l ये मन्दिर भी बहुत भव्य है l दूर से ही ये नजर आता
है l फिर गोविन्द देव मन्दिर के दर्शन किये l फिर रात के करीब ७ बजे तक वापस
धर्मशाला आ गया l
अगले दिन यानि १७ फरवरी को मुझे विशेष
घुमने की इच्छा नहीं थी l बाँके बिहारी मन्दिर पास में ही था l जाकर वहाँ पेडा का
प्रसाद चढ़ाया l वहाँ पेडा का प्रसाद चढ़ता है l फिर आज भी सिद्धपीठ इमलीतला गया l
इस दिन काफी संख्या में अंग्रेज आये हुए थे l उनकी निष्ठा देखने योग्य थी l मैंने
उनके भी फोटो लिए l इस दिन फिर एक बार दावानल कुण्ड में स्थित हरिबाबा आश्रम गया l जहाँ मैं ठहरा था वहाँ से ये करीब १ किलोमीटर की दुरी पर रहा होगा l उस दिन मार्ग नहीं पता था इसलिये खोजते-खोजते गया था l आज पहुँचने में कोई समस्या नहीं हुई l मेरे यहाँ दुबारा जाने की वजह ये थी धर्मशाला में जो गार्ड रहता था उसने ही हरिबाबा आश्रम का पता बतलाया था l वह व्रज का ही रहनेवाला था अतः उसके यहाँ के सभी जगहों की जानकारी है l उसने भी उनकी जीवनी पढने की इच्छा व्यक्त की अतः उसे लाकर दिया क्योंकि वह खरीदने में असमर्थ था l हरिबाबा आश्रम में जाने पर वहाँ एक लड़के ने बतलाया की आज शाम से ५ दिनों तक यहाँ पर अखंड कीर्तन चलेगा कहीं से कुछ लोगों का ग्रुप आने वाला था l ये सुनकर मेरी भी इच्छा हुई कीर्तन में शामिल होने की लेकिन चूँकि मुझे अगले दिन अहमदाबाद के लिए निकलना था अतः शामिल होने का विचार छोड़ दिया l
शाम को एक बार फिर निधिवन गया था l
वहाँ हरिदास की समाधि जहाँ है वहाँ कुछ स्त्री पुरुष बैठकर बहुत अच्छे शुर में
सामूहिक रूप से भजन गा रहे थे l मैंने करीब आधे घंटे बैठकर भजन सुना l बहुत आनंद
आया l निधिवन से बाहर निकलते ही बगल में ही शाहजी का मन्दिर था l उसके भी दर्शन किये l ये दोमंजिला है इस समय l ऐसा कहा जाता है की पहले ये सातमंजिला था जिसमें से ५ मंजिल को औरंगजेब ने तुडवा दिया था l
अगले दिन यानि १८ फरवरी को सुबह ९ बजे
मथुरा पहुँचा l और वहाँ से लोकल ट्रेन से करीब साढ़े १२ बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन
पर था l मुझे चूँकि पुरानी दिल्ली स्टेशन से अहमदाबाद के लिये ट्रेन पकड़ना था अतः
अब नई दिल्ली से पुरानी दिल्ली स्टेशन जाना था l मैं एक पैसेंजर ट्रेन का इन्तजार
करने लगा l लेकिन उस ट्रेन की कोई घोषणा नहीं हो रही थी l फिर किसी की सलाह पर
मेट्रो से पुरानी दिल्ली जाने का निश्चय किया l नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से निकलकर
पास में ही मेट्रो स्टेशन था l मुझे मेट्रो से चलने का अनुभव नहीं रहा है l अतः
पूछते-पूछते गया l पुरानी दिल्ली के लिये मेट्रो से चाँदनी चौक स्टेशन उतरना पड़ता
है l चाँदनी चौक स्टेशन उतरकर मैंने मेट्रो स्टेशन के फोटो लिये तब मेट्रो स्टेशन
के एक कर्मचारी ने आकर मुझसे फोटो डिलीट करवाये l मैंने बतलाया की मैं पहली बार
मेट्रो स्टेशन आया हूँ मुझे मालुम नहीं था की यहाँ फोटो लेना मना है l अच्छा रहा
की मुझे कोई फ़ाईन नहीं लगा l फिर चाँदनी चौक स्टेशन से बाहर निकलकर पुरानी दिल्ली
स्टेशन आकर अहमदाबाद के लिए आश्रम एक्सप्रेस का प्रतीक्षा करने लगा l
वैसे वृन्दावन के अलावा भी मथुरा,
बरसाना, नंदगाँव, गोकुल, गोवर्धन तथा दाउजी आदि स्थान भी दर्शनीय है l इससे पूर्व
जब आया था तब इन जगहों पर भी गया था l इस बार नहीं गया l
हरिद्वार यात्रा वर्णन अगले पोस्ट में
वृन्दावन में इसी धर्मशाला में ठहरा था l ये २०० वर्ष से अधिक पुराना है l पहले ये मन्दिर रह चुका है l |
बन्दर माला तोड़ते हुए |
निधिवन राज श्री बाँके बिहारी का प्राकट्यस्थल |
निधिवन में इन वृक्षों के बारे में ऐसा माना जाता है की ये रात को गोपियाँ बन जाती है |
निधिवन में हरिदास जी की समाधि |
निधिवन |
निधिवन में शाम को झाड़ू देती हुई एक महिला |
यमुना नदी |
गोशाला |
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन |
घोड़े जुटे रथ पर भगवान् श्रीकृष्ण की झाँकी |
जय गोमाता |
राधा कृष्ण |
सिद्धपीठ इम्लीतला में दीवार पर की गयी चित्रकारी |
सिद्धपीठ इमलीतला का माहात्म्य |
इमली का वृक्ष |
बीच में नृसिंह भगवान् |
गोशाला |
चीर घाट |
नाली का सारा गन्दा पानी और सारा कचरा यमुना में डाला जाता फिर कैसे गंगा या यमुना साफ़ रहेगा ये सोचने वाली बात है |
सुदामा कुटी यहाँ रामनामी साधू रहते है |
गोशाला |
जगनाथ जी के वृन्दावन आने की कथा |
टटिया स्थान में लगा बोर्ड |
टटिया स्थान |
हरिबाबा आश्रम |
हरिबाबा आश्रम |
वृन्दावन का एक मन्दिर |
वृन्दावन का एक मन्दिर |
गौडीय संप्रदाय के किसी आचार्य की समाधि |
वृन्दावन का एक मन्दिर |
राधा कृष्ण |
प्रेम मन्दिर के दीवार पर की गयी चित्रकारी |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
प्रेम मन्दिर |
इस्कोन मन्दिर |
इस्कोन मन्दिर |
इस्कोन मन्दिर |
इस्कोन मन्दिर |
इस्कोन मन्दिर |
स्नेह बिहारी मन्दिर |
सिद्धपीठ इमलीतला में अंग्रेजो का समूह |
इन अंगेजो को लेक्चर भी एक अंग्रेज ही दे रहा था |
अंग्रेज भक्त का गो प्रेम |
यही पर लिखा था कृष्ण भयो रघुनाथ |
टटिया स्थान में शाम को झाड़ू मारते हुए |
जगन्नाथ घाट का मन्दिर |
जगन्नाथ, शुभद्रा और बलराम |
राधा कृष्ण |
वंशीवट |
श्री राधा कृष्ण के चरण चिह्न |
वंशीवट का वट वृक्ष |
ब्रह्मकुण्ड का महात्म्य |
ब्रह्मकुण्ड |
ब्रह्मकुण्ड का प्राचीन अवशेष |
रंगजी का मन्दिर |
गोविन्ददेव मन्दिर |
जय गो माता |
धर्मशाला में गुमनाम मुसाफिर व्यवस्थापक के पुत्र के साथ, बन्दर से सापडे के बचाव के लिए रखा डंडा |
Add caption |
यमुना नदी के निकारे नावों का कतार |
शाहजी का मन्दिर |
बाँके बिहारी मन्दिर |
जहाँ मौका मिला क्रिकेट चालु, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ये बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे |